शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी- SGPC वो संस्था है जो देश विदेश में बने हुए सभी गुरुद्वारों पर नियंत्रण व उनका संचालन करती है। जाहिर सी बात है, नियंत्रण यदि इस संस्था का है तो गुरुद्वारों में होने वाली आय पर भी इसी संस्था का नियंत्रण रहता है। हालाँकि इस संस्था द्वारा किए गए अच्छे सामाजिक कार्य अक्सर प्रकाश में आते रहते है। संस्था अक्सर लंगर लगाकर मुफ्त भोजन वितरण के लिए काफी प्रसिद्ध है। पिछले दिनों कोविड महामारी के दौरान संस्था द्वारा चिकित्सा क्षेत्र में जो कार्य किए गए उनकी भी समाज ने काफी सराहना की। उसी दौरान दिल्ली में सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा मरीजो को ऑक्सीजन के सिलेंडर, वेंटिलेटर व अन्य बहुत सी सुविधाएं दी गई। इसी क्रम को जारी रखते हुए दिल्ली में सी टी स्कैन, एम आर आई, मेमोग्राफी व अन्य बहुत से टेस्टों के साथ-साथ देश का सबसे बड़ा डायलिसिस सेंटर स्थापित किया गया जो अपने आप में मुफ्त व अनूठा है। भविष्य में इसी प्रकार के सेंटर खोलने की योजना SGPC की है।
पिछले लगभग तीन दशको में जब से देश में स्वास्थ्य बीमा का बोलबाला हुआ है तब से मेडिकल सुविधा का पूर्ण रूप से व्यापारीकरण हो गया और व्यापारीकरण इस हद तक हो गया कि सरकारी अस्पतालों पर अधिक ध्यान व बजट देने की बजाए सरकारों ने गरीबो को मेडिकल बीमा देना मुनासिब समझा । परिणामस्वरूप बड़े अस्पतालों में पहुँचते ही मरीजों से एक ही सवाल किया जाने लगा कि आपके पास मेडिकल इंश्योरेंस है या नहीं। इस पूरे घटनाक्रम ने देश में एक बड़े मेडिकल माफिया को जन्म दे दिया। डॉक्टरों की तनख्वाएं बढ़ गई। डॉक्टरों को मरीजों से वसूले जाने वाले पैसों का टारगेट दिया जाने लगा, टारगेट पूरा होने पर पारितोषिक के रूप में बड़े-बड़े प्रलोभन दिए जाने लगे। अभी हाल ही में दवा कंपनी पर आयकर विभाग के छापे के दौरान एक सत्य सामने आया कि उस कंपनी ने किस प्रकार रातों-रात देश में अपना कब्ज़ा जमाने के एवज़ में डॉक्टरों को लगभग 1700 करोड़ रूपये सेल्स प्रमोशन के नाम पर महंगे गिफ्ट और उनको करवाई जाने वाली अय्याशियों पर खर्च किया। छोटी सी बुखार की दवा बनाने वाली इस कंपनी का नाम बच्चे-बच्चे की जुबान पर हो गया। आज खून की जाँच के नाम पर पूरे देश में एक बहुत बड़ा माफिया चल रहा है, जो जाँच बड़ी लैब में 500 रूपये की है वो बिना लाभ व नुकसान के चलने वाली संस्थाएं 50 रूपये में भी कर देती है। मैंने पहले भी अपने एक लेख में सरकार से आग्रह किया था कि सभी खून की जाँच के रेट फिक्स कर दे।
अब यदि हम SGPC की बात करें तो क्या SGPC की तर्ज पर अन्य धार्मिक और सामाजिक संस्थाएं पहल नहीं कर सकती है। आज देश में लाखो करोड़ रुपया धार्मिक संस्थाओं के पास नकद के रूप में और इनसे कहीं अधिक सम्पति के रूप में पड़ा हुआ है। मुझे याद है कि कोविड महामारी के दौरान इसी तरह की पहल राधा स्वामी संस्था ने भी की थी और दिल्ली में रातों-रात अस्थाई मेडिकल सेंटर बनाया था। धार्मिक संस्थाएं चाहे वे, किसी भी धर्म व सम्प्रदाय से सम्बंधित क्यों न हो, के पास भारी मात्रा में धन है। हरियाणा में पिछले दिनों सिरसा के एक डेरे के बाबा गुरमीत राम रहीम और दूसरे डेरे के बाबा रामपाल की स्थाई व अस्थाई संपत्तियों का पता लगा तब आकड़े हैरान कर देने वाले थे। सवाल यह होता है कि इस तरह की संस्थाएं व मठ चाहे वे किसी भी जाति की हो, अपने अनुयायियों को धन संग्रह न करने का प्रवचन देती है और खुद यह संस्थाएं धन संग्रह का जमावड़ा बन जाती है। मेरा मानना है यदि देश की सभी धार्मिक व सामाजिक संस्थाएं शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में बढ़-चढ़कर आगे आए तो इससे बड़ी मानवता की सेवा और कुछ नहीं हो सकती। पिछले दो दशकों में जीवन के दो पहलुओं में बहुत ज्यादा व्यवसायीकरण हुआ है और वो दोनों है स्वास्थ्य और शिक्षा । इन दोनों क्षेत्रों से यदि यह संस्थाएं आगे आएंगी और मानवता की सेवा का सच्चा संकल्प उठाएंगी तो भारत में स्वास्थ्य और शिक्षा विश्व के उच्च स्तर पर पहुँच सकती है। इसके लिए चाहे सरकारों के भी कड़े कदम उठाने पड़े । यदि कोई उद्योगपति के ऊपर सरकार CSR का प्रतिबंध लगा सकती है तो मेरा ऐसा मानना है कि धार्मिक और स्वयंसेवी संस्थाओं की कुल आय का 50% सिर्फ और सिर्फ स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में इसके द्वारा खर्च होना अनिवार्य होना चाहिए।
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