top of page
logo.jpg
  • Facebook

आखिर कब तक होगा लोकतन्त्र के मन्दिर में नाटक

  • Writer: शरद गोयल
    शरद गोयल
  • Oct 1, 2023
  • 1 min read

आखिर कब तक होगा लोकतन्त्र के मन्दिर में नाटक

भारत को राजनैतिक गुलामी की दासता से मुक्ति पाने के 68 वर्ष पूरे हो गये। स्वतंत्रता प्राप्ति की लालसा पालने वालों की सोच थी कि राजनैतिक गुलामी की दासता से मुक्ति मिलते ही भारतीय समाज पुनः समृद्ध, सम्पन्न और सौभाग्यवान हो जायेगा। किन्तु अभी जब स्वतंत्रता दिवस से पूर्व देश के समाचार-पत्रों में पढ़ने को मिलेगा कि संसद का लगभग सम्पूर्ण मानसून सत्र निष्फल रहा, बिना कामकाज के समाप्त हुआ, विवादों से घिरा रहा और देशों में एक दुर्गन्ध युक्त वैमन्स्य पैदा कर खत्म हुआ है तो स्वतंत्रता संग्राम के भागीदारों की आत्मा को एहसास हो रहा होगा कि देश के प्रति उनके बलिदान, उनकी तपस्या व्यर्थ गयी, वे पश्चाताप की अग्नि में तप रहे होंगे। 

संसद के मानसून सत्र के अवसान पर सरकार का कहना है कि विपक्ष ने सत्र न चलाकर देश के विकास को रोका है, विपक्ष का आरोप है कि सत्ता पक्ष ने भ्रष्टाचार को पनाह देकर समाज को सम्पन्नता के मार्ग पर जाने में रोड़ा अटकाया है। सरकारी पक्ष और गैर सरकारी पक्ष अपने-अपने दावों को न्यायोचित ठहराते देखे जा रहे हैं। 

संसद के सत्र वांछित कामकाज किये बिना समाप्त होने से होने वाली हानि का आर्थिक रुप से आंकलन करना विशेष महत्व का नहीं होगा क्योंकि आर्थिक रुप से हो रही हानि को तो किसी रुप में पुनः प्राप्त किया जा सकता है परंतु जो देश की छवि का हास्य विश्व में हो रहा है उसकी पुनः क्षति पूर्ति कठिन है। भारत लोकतांत्रिक देश है परन्तु यदि संसद ही महत्वहीन कर दी जायेगी तो लोकतंत्र केवल तमाशा बनकर ही रह जायेगा तथा देश का महत्व, उसकी साख भी विश्व की नजरों में नीचे आ जायेगी। 

21 जुलाई से अभी संसद का सत्र बिना कामकाज के समाप्त हो गया परंतु जैसा मैंने पहले कहा कि सत्र का अवरोध करने के संबंध में जो दोनों पक्षों के आरोप हैं, एक समान स्वीकार्य हैं। संसद नहीं चलने से देश के विकास को धक्का लगता है तो भ्रष्टाचार के मामलों पर गंभीर न होना भी देश के विकास को सर्वोन्मुखी होने से रोकता है। आज देश में विकास की गति बढ़े यही केवल आवश्यक नहीं बल्कि उससे भी अधिक आवश्यक है कि देश का विकास का लाभ समाज के निर्धनतम व्यक्ति तक पहुंचे। वस्तुतः संसद सत्र का विधिवत संचालन हो इसका दायित्व पक्ष और विपक्ष दोनों पर है किन्तु दायित्व निर्वाहण में तनिक भिन्नता अवश्य हो सकती है। सभी लोग इस मामले में एक मत देखे जाते हैं कि उपरोक्त दायित्व निर्वाहण में अधिक भागीदारी सत्ता पक्ष की होती है। इसी लिये सभा संचालन हेतु सभापति का चयन किया जाता है जिसे स्पीकर कहते हैं। तो यह सभापति का पद का दायित्व सत्ता पक्ष को मिलता है इससे साफ है कि सभा का संचालन कराने की अधिक जिम्मेदारी सत्ता पक्ष की है परंतु विपक्ष भी इस जिम्मेदारी से पीछे नहीं क्योंकि उसी अवसर पर उप सभापति का आसन विपक्ष के लिये सुनिश्चित किया जाता है ताकि लोकसभा का संचालन परस्पर तालमेल से अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभाते हुये किया जा सके। 

सेलहवीं लोकसभा के पांचवे सत्र का सदा-सदा के लिये स्मरण रखा जायेगा। यह एक अद्भुत सत्र होगा जिसमें कोई वांछित सरकारी काम नहीं किया जा सका। सत्र के प्रारंभ से ही पक्ष और विपक्ष अपनी शुद्र राजनैतिक सोच के शिकार स्पष्ट दिखाई देने लगे थे। विपक्ष केन्द्रीय मंत्री सहित राज्यों के कुछ मुख्य मंत्रियों पर भ्रष्टाचार का आरोप गढ़ चुका था तो पक्ष सत्र में अवरोध पैदा करने के लिये विपक्ष को देश के आर्थिक विकास में अवरोधक के रुप में प्रमाणित करने में लगा था। 18 कार्य दिवसों का सत्र समाप्त हो चुका है। प्रायः प्रतिदिन अभूतपूर्व शोर-शराबा हुआ परंतु किसी भी ओर से जिसमें पक्ष-विपक्ष व सभापति पैनल शामिल हैं द्वारा कोई कारगर प्रयास नहीं किया गया जिसका परिणाम प्रकाश में आया हो। आखिकार संसद का हंगामा समाप्त हुआ। पर अनेक प्रश्न आज भी अधूरे जवाब ढूंढ रहे हैं। 17 दिन बाद जो बहस लोकसभा में हुई क्या यही बहस प्रारंभ में करके सदन को विधिवत नहीं चलाया जा सकता था ? क्या सदन में मात्र एक-दूसरे पर दोषारोपण करके कारगर चर्चा सम्पन्न हो सकती है ? भारत की राजनीति में भ्रष्टाचार सबसे बड़ी समस्या नहीं है ? संसद में बड़े हंगामे के बाद इस पर चर्चा हुई, एक-दूसरे पर आरोप और प्रत्यारोप लगाये गये। अपने ऊपर लगाये हुये आरोपों का जवाब देने के लिये दूसरे लोगों पर आरोप गढ़े गये। किन्तु राजनीति में भ्रष्टाचार को थामने पर न विचार किया गया, न उस पर आचरण का संकल्प लिया गया। बहस समाप्त हो गयी। मुद्दा खत्म मान लिया गया। क्या यही अच्छी लोकतांत्रिक व्यवस्था का लक्षण है ? यदि मेरी माने तो नहीं, और मैं ही नहीं बल्कि इस देश का कोई भी बुद्धिजीवी व सामान्य नागरिक इसकी प्रशंसा नहीं करेगा दुःख की बात यह है कि यह कोई पहला मौका नही जब संसद में इस तरह के हगामें हुये हों, संसद में हगामें करना व संसद की कार्यवाही न चलने देना जैसे सभी पार्टियों का एक एजेण्डा बन गया है, जनता के बहुमूल्य वोट से जीतकर सांसद, जो कि देश पर करोड़ों रुपये साल के लाइब्लेटी बने हुये है, उनकी इस देश के और अपने कर्म के प्रति बचा जवाब देही है जिसके लिये उनको चुनकर पार्लियामेन्ट में भेजा गया है, पार्लियामेन्ट में झाडू वाले कर्मचारी की भी अपने कार्य के प्रति जवाबदेही है, लेकिन सांसदों की जवाबदेही किसके प्रति है, हर महीने तनख्वाह और न जाने कितनी सहूलियतें पाने वाला सांसद किस संस्था के प्रति जवाबदेय है, यदि संसद के प्रति नहीं तो क्यों नहीं ऐसा कानून बनाया जाता जब संसद की कार्यवाही न चलने वाले दिन सांसदों का वेतन काट दिया जाये, और उस पर अनुशासनहीनता की कार्यवाही चले और उसमें संसद से निलम्बन तक का प्रावधान हो देश का आम नागरिक संसद के हर सत्र में अपनी भलाई के होने वाले फैसलों का इंतजार करता रहता है और संसद की कार्यवाही ठप्प पड़ी रहती है, किन्ही भी परिस्थितियों में इनकी कार्यवाही ठप्प नहीं होनी चाहिये अन्यथा दुनिया का सबसे बड़ा लोकतन्त्र कह जाने वाला यह देश दुनिया के सामने हसीं का पात्र बन जायेगा। देश को नियम कायदे व अनुशासन सिखाने वाली यह संसद सुद कब अनुशासित होगी आम नागरिक उस दिन का इन्तजार कर रहा है।               

Commentaires

Noté 0 étoile sur 5.
Pas encore de note

Ajouter une note
bottom of page