आज विकास भारत की आवश्यकता ही नही, आनवायेता है
- Sharad Goel
- May 2, 2023
- 6 min read
Updated: Sep 21, 2024
आज विकास भारत की आवश्यकता ही नही, आनवायेता है। किन्तु विकास का मोडल निर्धारित काले समय गम्भीरता से पुर्न विचार काम होगा अन्यथा तो भर्वाथ में भी विकास को दावें भी देखें जायेंगे और इसी ओर समाज में 67 प्रतिशत आबादी को एक, दो, तीन रूपया प्रति किलो के हिसाब से अनाज उपलब्ध कराने की मजबूरी भी सामने आयेगी। आज तक भाव में विकास के ढोल सेवा - क्षेत्र की उपलब्धीयों के के बल पर वजे है किन्तु इनका परिणाम देश के सामने है जो कारगर नही है। वास्तव में विकास की आधार उत्पादन-क्षेत्रों को विकास के आधार पर हानेा चाहिए तभी सर्वागीण, संतुलित और स्थायी विकास का लाभ समाज के अन्तिम व्यात्प तक पहुंच पायेगा।
देश में उत्पादन क्षेत्र के विकास के आधार पर विकास का माडल अमल में लाने के लिये, स्वास्थ्य, शिक्षा व न्याय व्यवस्था के कागार, व्यापक, सुलभ और प्रत्येक नागरिक की पहुंच में लाने की आवश्यकता है। उपरोक्त व्यवस्था से व्यापक होगी, पर सुलभ नही होगी, तो परिणाम सामने नहीं आयेंगे। यदि ये सुलभ भी होगी किन्तु व्यात्म की पहुंच के वहां होगी तो भी वांछित फल प्राप्त नहीं होंगे अतः देश में शिक्षा, चिकित्सा और न्याय, सुलभ, व्यापक और सस्ते होने चाहिये ताकि समाज की निर्यन व्यक्ति इनका उपयोग अपने लिये कर पायें।
मैं यहां चिकित्सा व्यवस्था या विचार करना शेष अन्य दो व्यवस्थाओं पर विचार भविष्य के लिये छोड़ता हूँ। आज देश में चिकित्सा व्यवस्था सम्पूर्ण रूप से दिशा प्रभाव हो चुका है। चिकित्सा व्यवस्था एक आयोग का दर्जा प्राप्त करके अधिकतम धन-उपजाने का साधन बना दी गई है। चिकित्सा उद्योग में लोगो का यह धन उपार्जन का साधन बन जाने से इस क्षेत्र मे लूट-खसौट जबरदस्त हो गयी है। देश की मेडीकल कौंसिल आॅफ इंण्डिया मे रिश्वत लेने के आरोप में 300 आकड़ों को आरोपो की जांच हो रही है। हाल ही ये देश के समाचार पत्रों से प्रकाशित हुआ है कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की ब्रान्डेड दवा किडनी और कीवा के कैन्सर में उपयोग आने वाली एक मरिज की एक माह के लिये की मत 2.84 लाख रूपये है जबकि इसी दवा के जेनेरिक स्वरूप की कीमत 8,800 रूपया मात्र है। मेडीकल दिवाइज का बाजार देश में 6.3 वि. डाला का है और इसमें 70 प्रतिशत आयात होता है। हृदय रोग के ओपरेशन में उपयोग होने वाले छल्ले’’ का आया मूल्य 40,000 रूपया हो गया है। जबकि अस्पतालों में इसका मूल्य मरीज से लोखें वसूला जाता है। देश में दवाओं का वार्षिक कारोबार आज लगभग 79,000 करोड़ रूपये का हो चुका है।
चिकित्सा व्यवस्था के उद्योग के रूप में विकसित होने के कारण है, सरकार की उदारवादी आर्थिक नियमों के तहत मुत्फ बाजार की कल्पना, साथ ही सरकार की ओर से चिकित्सा व्यवस्था के संचालन व स्थापना में कुताही/ विश्व बैंक के सर्वेक्षण के अनुसार भारत में चिकित्सा पर सकल घोलु उत्पाद का कुल व्यय 4 प्रतिशत है जबकि चीन में यह 3.4 प्रतिशत ब्राजील में 9.3 प्रतिशत। देश में चिकित्सा क नाम पर इकाईयों की संख्या दिखा कर सरकार की ओर से दावे किये जाते है या उनमें डाक्टरों व उनके सहयोगियों की संख्या की कमी को दूर करने का अभाव रहा। चिकित्सा डाक्टरों से होती है, चिकित्सा सम्बन्धी इकाईयों की स्थापना से नही। आंकड़े स्पष्ट है कि गोवा में स्वास्थ्य केन्द्र और डाक्टर समान रूप से उपलब्ध है वहां बालकों में मृत्यु-दर शून्य है, इसी प्रकार केरला में अन्तर नही भी है। मृत्यु दर 12 है तमिलनाडू में 0.1 प्रतिशत है मृत्यु दर रही इसी ओर उड़ीसा, म0 प्र0, उ0 प्र0 में इकाईयों और डाक्टरों की संख्या का अन्तर क्रमशः 14 प्रतिशत, 34 प्रतिशत और 27 प्रतिशत तो यहां मृत्यु दर भी 37 प्रतिशत, 57 प्रतिशत और 59़ प्रतिशत है उसे और स्पष्ट करने के लिये। गोवा में 495 जनसंख्या पर एक डाक्टर उपलब्ध है जबकि केरला में 811 जनसंख्या पर एक डाक्टर तमिलनाडू में 789 लोगों के लिए एक चिकित्सक है वही उड़ीसा में 2,500 लोगों के लिये एक डाक्टर है। यू.पी. में 3,316 आबादी पर एक डाक्टर और म.प्र. में 26000 जनसंख्या पर एक चिकित्सक की उपलब्धी है।
देश में अंधी विकास की दैड़ के लिये अपनायी गयी रीति निति के तहत मृत्यु बाजार की धारणा ने चिकित्सा तथा व्यवस्था का उद्योग वाला कर एक अद्धा खाली धन कमाने का जरिया है। चिकित्सा मंहगी व मंदी गयी है। पिछले केन्द्रिय स्वास्थ्य में भी महोदय ने स्वीकार किया था कि देश में इस मंहगी चिकित्सा के कारण प्रतिवर्ष लगभग 3 करोड़ से 4 करोड़ लोग गरीबी की रेखा में चले जा रहे है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसर 12.8 करोड़ लोग मलेरिया से प्रभावित होते है। देश में 5 आत्म हत्याओं में एक आत्म हल्या बीमारी के कारण हो रही है। 3,20,000 माते देश में टी.वी. के कारण है। आज भी लगभग 40 प्रतिशत आबादी अस्वस्थ्य जीवन जीने के लिए बाध्य ही विद्यमान और खनिजों की उपयुक्त मात्रा में उपलब्धी न होने के कारण देश की श्रम शक्ति का शारीरिक व मानसिक विकास रूका हुआ है। परिणाम यह है कि देश के श्रमिक की उत्पदकता कम है और इस कारण देश के सकल घरेलू उत्पाद में वार्षिक 12 विलि. डाॅलर की भी आंकी जा सकती है। देश का प्रत्येक परिवार अपने पोकेट व्ययका 75 प्रतिशत चिकित्सा पर व्यय करने के लिए बाध्य है। जबकि अमेरिका और इंगलैण्ड में यह व्यय 15 प्रतिशत से भी कम है।
वर्तमान सरकार इस चिकित्सा समस्या के समाधान के लिए यूनिवर्सल हैल्थ एन्शोरेन्स मिशन योजना चालू वर्ष के अन्त तक करने का निर्णय लिया है जिसके अन्तराल गरीब लोगो को मुफ्त चिकित्सा उपलब्ध करना लक्ष्य है शेष को बहुत कम प्रीमियम पर 50 ऐलोपेथिक (अंग्रेजी) 30 आयुर्वेदिक दवाये उपलब्ध करने के अतिरिक्त निदान के लिये परिक्षण निःशुल्क उपलब्ध होंगे। योजना क्रीयान्वयन पर सरकार इस आगामी 4 वर्षों में 1,20,000 करोड़ रूपया व्यय करने का अंकलन है। यह योजना कितनी फलदायिनी साबित होगी यह तो भविष्य ही तय करेगा। परन्तु भारत में अभी तक बीमार - व्यवस्था इस चिकित्सा समस्या का समाधान बड़ा ही निराशजनक रहा है। देश में 60 वर्ष की आयु से अधिक लोग भी 7 प्रतिशत कुला आबादी के वात कार्य जाते है। 2010 में यह संख्या 7.2 मिलि. आंकी गयी है। 2015 तक इस संख्या का अनुमान 112 मिलि. है और 2050 में 297 मिल. परन्तु अभी बीमा - व्यवस्था के अन्र्तगत मात्र 1.6 प्रतिशत लोगो को ही लाभान्वत किया जा रहा है।
देश में मंहगी दवाओं के मूल्य पर किये ऋण के लिए लगभग गत एक दशक से प्रयास रत है किन्तु परिणाम अभी भी सामने नही आ पाये है। अभी दवाओं के कीमते वास्तविकता पर लाने के लिए आदेशों की आभार हो रही है पर परिणाम कब आयेगा। भविष्य में प्रतीक्ष ही करनी होगी।
यू. एन. जनरल से सेभ्व की में विश्व के 177 देशों ने 21 जून को योग दिवस अन्र्तराष्ट्रीय स्तर पर बनाने का निर्णय किया है। यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों का ही परिणाम है। आज विश्व में भारतीय चिकित्सा प्रक्रियाओं के प्रति एक समान स्पष्ट प्रतीत हो रहा है देश में भी इस रूख को बल मिले इसका प्रयास आवश्यक है। देश की मूल चिकित्सा प्रणाली जहां प्रभावकारी है, जाहं प्रयोग में और लाभकारी भी है, साइड ऐर्फक्ट नही। वही सस्ती और सुलभ भी है। संयोग की बात आज यह भी है कि देश में अभी आयुर्वेदिक, होम्योपेथिक प्राकृतिक चिकित्सा, योग के प्रति आस्था और विश्वास और भी दृढ़ हुआ है। समस्या समाधान के लिये इस वातावरण का उपयोग का उपरोक्त दशा चिकित्सा प्राणालियों को प्रोत्साहन सरकार की ओर दिया गया। देश की चिकित्सा प्रणाली को अंग्रेजी चिकित्सा व्यवस्था का प्रतिबन्दी न बना कर पूरक व्यवस्था के रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिये। वर्तमान को में ही एक विभाग आयुर्वेद, होम्यापेथिक व प्राकृतिक चिकित्सा योग की स्थापना की जाय और जन मानस की इस विकट समस्या के समाधान के योगदान किया जाए तो देश में वर्तमान चिकित्सा क्षेत्र मे धन लूट के अतिरिक्त मानव जीवन से विवाद के मामले भी प्रकाश में है जनवरी 2013 से 370 मामलों में जैसे 222 मामलों में औषधियों के प्रयोग मानव जीवन पर प्रयोग में मौते होने के समस्या है इनमें ही समीक्षा की गई है तथा कुल 21 मामलों में क्षतिपूर्ति की गयी है क्षति पूर्ती के लिये दी गयी राशि 4 लाख से 40 लाख तक है उपरोक्त तथ्य उन आंकड़ो और सूचनाओं के आधार पर तय किये गये है जो क्लीनिक ट्रायल उद्योग में निवेशकों के द्वारा रेगूलेटरी उनके ओथोरिटीयोे को दिये गये है। भला विचार तो कीजिए जो दोषी है उन्ही की तर्को पर निर्णय कितना निष्पक्ष और न्याय संगत हो सकता है। आवश्यकता है देश से इस कलंक को मिटाने हेतु सरकार अपनी निगरानी में औषधियों की प्रमाणिकता के लिये व्यवस्था अपनायें।
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