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आरक्षण समाधान था पर आज समस्या बन गया

  • Writer: शरद गोयल
    शरद गोयल
  • Jan 1, 2023
  • 4 min read

आरक्षण एक समाधान है परंतु आज ये समस्या बन कर देश में उभर गया है। देश के हितों को सर्वोपरि समझने और मानने वाले समाज के लिये समर्पित हमारे पूर्वज नेताओं ने समाज के दीन और विहीन वर्ग को सामान्तर पटरी पर लाने के लिये आज से लगभग 60 वर्ष पूर्व इस व्यवस्था को देश में लागू करने का निर्णय लिया था। परंतु खेद है कि पूरे दो पीढ़ियों की अवधि व्यतीत होने के बाद आज ये व्यवस्था वोट बैंक के रूप में परिवर्तित हो चुकी है। समाज में वो वर्ग जो आरक्षण व्यवस्था के अंतर्गत है वह भी और वह वर्ग जो आरक्षण व्यवस्था के बाहर है वह भी अब इस आरक्षण व्यवस्था के प्रति अपने-अपने हितों की दृष्टि से देख रहे हैं।


हरियाणा में आरक्षण हेतु जाट जाति के समुदाय ने पुनः आंदोलन शुरू किया है यद्यपि इससे पूर्व भी इस समुदाय द्वारा गत दशकों में लगभग 5-6 बार इस प्रकार का प्रयास किया गया है। किन्तु इस बार का प्रयास पिछले प्रयासों की तुलना में भिन्न नजर आ रहा है। आरक्षण की आग आज पूरे देश में जंगल की आग की तरह फैलती जा रही है। गुजरात में पटेल, आंध्र प्रदेश में कापस, महाराष्ट्र में मराठा, आसाम में अहोम, राजस्थान में गुर्जर और यहां तक कि ब्राह्मणों द्वारा भी गुजरात में इस आग में कूदने के समाचार आ चुके हैं।


देश में 27 प्रतिशत आरक्षण पिछड़े वर्ग के समुदाय के लिये और 22.5 प्रतिशत आरक्षण अनुसूचित जाति एवं जनजाति के वर्ग के लिये अभी लागू है। देश का उच्चतम न्यायालय वर्षों पूर्व देश में निर्देश जारी कर चुका है कि आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं किया जा सकता। ऐसी अवस्था में अब जो आरक्षण की मांग स्वीकार होगी वह इस 50 प्रतिशत आरक्षण के अंतर्गत ही आंकी जायेगी और इस प्रकार जो जातियां आज 50 प्रतिशत आरक्षण के अंतर्गत लाभान्वित हो रही हैं उन्हें कटौती झेलनी होगी। और यही कारण है कि जहां कहीं आरक्षण की उग्र मांग होती है समाज में दूसरे वर्गों के कान खड़े हो जाते हैं और वे विरोध में आ जाते हैं।


मैं समझता हूं कि आरक्षण देने के पूर्व में दो आधार स्वीकार किये गये होंगे। एक-दीनता और दूसरा- विहीनता। इसमें प्राथमिकता दीनता को माना गया होगा क्योंकि विहीनता आज है कल पुरूषार्थ के बल पर समाप्त की जा सकती है। परंतु दीनता में व्यक्ति अपने आपका आत्म विस्मरण कर बैठता है और असहाय होकर गिड़गिड़ाने के सिवाय उसे और कुछ नहीं सूझता। इस अवस्था से उबारने के लिये निश्चित रूप् से आरक्षण आवश्यक व्यवस्था है और इसी कारण स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश में आरक्षण व्यवस्था शुरू की गई होगी।


हरियाणा में जाट एक मार्शल और कृषक धंधे से जुड़ा समुदाय है। सामान्य सूत्रों के आधार पर ये राज्य की कुल आबादी का 25 प्रतिशत माना जाता है। किन्तु जाट जाति के सूत्रों के अनुसार यह प्रतिशत 29 प्रतिशत कहा जाता है और 86 प्रतिशत इस समुदाय के लोग खेती करते हैं। हरियाणा की विधानसभा में इस वर्ग का प्रतिनिधित्व लगभग 30 प्रतिशत है। राज्य के प्रभावी राजनीतिक दलों में दो राजनीतिक प्रभावी दलों के मुखिया आज भी जाट समुदाय के हैं। ऐसी अवस्था में यह समुदाय दीनता की गणना में नहीं आ सकता जिसे आरक्षण की आवश्यकता हो। परंतु आज जिन कारणों से प्रेरित होकर आरक्षण की मांग की जा रही है वह निरर्थक और अनुपयोगी नहीं है। जैसा मैंने कहा इस वर्ग के 86 प्रतिशत लोग खेती पर निर्भर हैं , देश में जो विकास के लिये नीति और अर्थव्यवस्था अपनायी गयी उसके कारण यही समुदाय नहीं बल्कि समस्त कृषक समाज त्रस्त हुआ है। सरकारी नीतियों के तहत किसान की कृषि भूमि सड़कों, बंदरगाहों आदि विकास के लिये ग्रहित कर दी गयी । परिणामस्वरूप आज देश में लगभग 58 प्रतिशत ग्रामीण आबादी भूमिहीन है। एक ओर किसान भूमिहीन हो गया और दूसरी ओर जो कृषि है वो अलाभकारी हो चुकी है। जिसके चलते आज देश में किसान आत्महत्याएं कर रहा है। ग्रामीण परिवारों में नये युवक बेरोजगार हो चुके हैं। खेती वो इसलिये नहीं कर सकते कि खेती उन्हें रोटी नहीं दे सकती और दूसरे व्यापार या उद्योग वे इसलिये नहीं कर सकते क्योंकि उसमें उनकी कुशलता नही। परिणाम यह है कि आज उनमें रोष, आक्रोश व असंतोष चरम सीमा पर है और इन्हीं हालातों ने हरियाणा के समस्त जाट जाति को आरक्षण की मांग के पीछे खड़ा कर दिया।


आज जरूरत इस बात की है कि समस्या को जड़ से समाप्त कर उसका समाधान किया जाये। यद्यपि अभी तक 60 सालों में देश में समस्याओं का समाधान या तो उससे बड़ी समस्या पैदा करके किया गया है जिससे पिछली समस्या को लोग भूल जायें और नई समस्या के संकट से त्रस्त हो जायें।


यह फाॅर्मूला आरक्षण की समस्या के समाधान के मामले में लागू करना उचित नहीं होगा। सबका साथ सबका विकास अवधारणा का क्रियान्वयन आज समय की जरूरत है। आरक्षण व्यवस्था को हटाना किसी भी प्रकार से सार्थक नहीं है। क्योंकि समाज के जिस वर्ग के लिये यह व्यवस्था चालू की गयी थी उस समुदाय की अधिकांश आबादी दीन, विहीन अवस्था में पड़ी है। आरक्षण व्यवस्था को हटाने की अपेक्षा इस व्यवस्था के क्रियान्वयन को कारगर बनाने की आवश्यकता है किन्तु यह भी समझना आवश्यक है यह आरक्षण व्यवस्था समाज के अन्य वर्गों के लिये विकास का रोड़ा न बने जो आज बन चुका है। जरूरत है देश में उपलब्ध पारंपरिक श्रम के लिये सहज और सरल रोजगार उपलब्ध कराये जायें। इसके लिये वर्तमान अर्थव्यवस्था में परिवर्तन करना होगा, विकास के माॅडल को बदलना होगा। खेती को स्वावलम्बी बनाना होगा। आज परावलम्बी खेती अलाभकारी हो गयी है क्योंकि उत्पादन लागत का नियंत्रण नहीं रहा। श्रम प्रधान तकनीकी के माध्यम से कृषि उत्पादों के आधार पर कुटीर उद्योगों का देश में जाल बनाना चाहिये। पशुपालन, हथकरघा उद्योग, तिलहनों की कोल्हू पिराई ऐसे उद्योग हैं जो इस देश के सम्पूर्ण श्रमिक वर्ग को रोजगार दे सकते हैं और छोटे-बड़े सभी प्रकार के उद्योगपतियों को भी यथायोग्य अवसर प्रदान करेंगे। और जहां तक सवाल आरक्षण का है मेरा मानना है कि उद्योगों के जरिये यदि रोजगार के अवसर बढ़ाये जायेंगे तो आरक्षण की आवश्यकता समाज के बहुत सीमित वर्ग को रहेगी। आरक्षण आवश्यक है तो उसके आधार पर एक विस्तृत चर्चा होनी चाहिये। आरक्षण नीति पर खुले मन से पुर्नविचार होना चाहिये। आर्थिक पिछड़ापन, क्षेत्रीय पिछड़ापन, शारीरिक विकलांगता, शहीदों के परिवार, अनाथालयों के बच्चे, सैक्स वर्कर्स के बच्चे इत्यादि इस आरक्षण का फायदा उठाकर देश की मुख्यधारा से जुड़ें। ऐसा मुख्य रूप से आरक्षण का आधार होना चाहिये। न कि विशुद्ध रूप से जाति का आधार माना जाये। तभी आरक्षण देश की विभिन्न समस्याओं का समाधान बनेगा न कि समस्याओं का कारण।

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