‘‘कार फ्री डे’’ प्रशासन भी तो कुछ करे
- शरद गोयल
- Jan 1, 2023
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गुड़गांव पुलिस ने लगभग एक महीने पहले बड़े गाजे-बाजे के साथ प्रशासन के अन्य अधिकारियों के साथ गुड़गांव के डी एल एफ क्षेत्र में कार फ्री डे का आयोजन किया और ढेरों शाबाशी लूटी। दरअसल इसमें कोई संदेह नहीं कि गुड़गांव पुलिस द्वारा उठाये गये इस कदम को आम जन द्वारा सराहा जा रहा है और सही मायने में पूछो तो आम नागरिक रोजाना सड़कों पर लगने वाले जाम से बेहद परेशान व दुःखी भी हैं। ऐसे में यदि इसको हफते में एक दिन ही सही ,सड़कों के इस जाम से मुक्ति मिल जाये तो वह इसके लिये बड़ी बात है। अब सवाल यह उठता है कि क्या गुड़गांव की सड़कें , गुड़गांव के फुटपाथ इस बात के लिये तैयार हैं कि उन पर कोई भी नगरवासी बिना कोई चोट खाये और सुरक्षित तौर पर चल सके लेकिन यह एक अजीब इस शहर की विडम्बना है कि यहां पर इनफ्रास्र्टक्चर पर ध्यान देने के बजाय नये-नये सवूफे छोड़ने का प्रचलन हो गया है। अभी स्वच्छ भारत अभियान के तहत शहर में कूड़ेदान लगने की शुरूआत हुई नहीं थी कि एक नया नारा आ गया-कार फ्री डे। गुड़गांव के फुटपाथों की हालत गुड़गांव से छपने वाले एक हिन्दी दैनिक में चित्रों के माध्यम से लगभग तीन महीनों से दर्शायी जा रही है लेकिन शायद यह खबरें गुड़गांव प्रशासन को नींद से जगाने में कामयाब नहीं हो पायी है। हालत यह है कि फुटपाथ पर कब्जों के दृश्य देखना गुड़गांव वासियों के लिये एक साधारण सी बात हो गयी है। कुछ सड़कों से गुजरते समय तो ऐसा लगता है कि फुटपाथ की मुरम्मत व रख-रखाव का कार्य शायद सरकारी तंत्र की परिधि में आता ही नहीं है या यूं कहिये कि पैदल चलने मात्र के लिये एक साफ सुथरा फुटपाथ नगर निगम, हुड्डा व पी डब्लयू डी के कार्य क्षेत्र में नहीं आता । वैसे तो गुड़गांव में फुटपाथ पर जगह-जगह सब्जी, ठेले, मटके आदि न जाने क्या-क्या बेचने वालों का कब्जा है और यदि कहीं बचा भी है तो उस पर कीकर के बड़े-बड़े पेड़ों ने उस फुटपाथ को आम नागरिकों को न चलने देने के लिये सुनिंिश्चत किया है। एक हफते के अंदर सभी ऐसे फुटपाथ जिन पर कीकर के पेड़ों का अतिक्रमण है, छटाई करके चलने योग्य बनाया जा सकता है। लेकिन करे कौन व सोचे कौन? फुटपाथ व सड़क के किनारे पड़ा हुआ रेत भी लोगों को बिना कार के अन्य साधनों द्वारा या पैदल चलकर सड़कें इस्तेमाल करने के लिये रोकता है। सड़कों के किनारे पड़ा यह रेत गुड़गांव में नागरिकों का इस हद तक जीना दुभर कर रहा है कि पैदल चलने वालों को तो अपना मुंह पूरी तरह से ढक कर चलना पड़ रहा है। कार फ्री डे हफते में एक दिन ही नहीं बल्कि रोज मना सकते हैं। क्योंकि कोरपोरेट जगत का एक बहुत बड़ा हिस्सा अपने कार्यालय से अधिकतम 2-3 किलोमीटर पर ही रहता होता है जो कि साईकिल तो दूर आदमी पैदल भी चल सकता है। प्रशासन को सोचना होगा कि लगभग एक सवा महीने के इस अभियान के चलते होने के समय में उन्होंने सड़कों को पैदल व साइकिल द्वारा चलने के लिये कितना सुरक्षित व पुख्ता किया है। यहां पर एक बात ओर ध्यान देने योग्य है कि गोल्फ कोर्स रोड पर जो कि गुड़गांव का सबसे ज्यादा प्रीमियम इलाका माना जाता है, लगभग तीन साल से वहां की सभी स्ट्रीट लाइटें हटा दी गयी हैं और बार-बार पत्र लिखने के बाद भी प्रशासन के किसी भी अधिकारी ने रात को दौरा करके यह नहीं देखा कि सड़क निर्माण कम्पनी द्वारा स्थायी तौर पर स्ट्रीट लाइटें लगानी चाहियें। आने वाले समय में शाम 6 बजे ही अंधेरा होने लगता है, यह सोचने योग्य है कि स्ट्रीट लाइटें है नहीं, कार हम इस्तेमाल नहीं कर रहे, तो आफिस से घर शाम को हाथ में टार्च लेकर जायेंगे। अभियान चाहे कोई भी हो ,स्वच्छ भारत हो या कार फ्री डे हो, यदि उसको गंभीरता से नहीं लिया जायेगा तो वह सिर्फ एक दिखावटी इवेंट बन कर रह जायेगा। जहां तक सवाल है आम जनता का ,वह तो बेचारी परिस्थितियों से समझौता करना सीख लेती है।
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