top of page
logo.jpg
  • Facebook

क्या लाइलाज बन गया है “जे.एन.यू.” का रोग

  • Writer: शरद गोयल
    शरद गोयल
  • Jun 12, 2023
  • 2 min read

Updated: Sep 21, 2024

हर थोड़े दिन के अंतराल के बाद देश के प्रमुख विश्वविद्यालयों में एक जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी किसी ना किसी विवाद में आ जाती है। 22 अप्रैल 1969 को अस्तित्व में आई 1019 एकड़ जमीन और 4.12 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला यह विश्वविद्यालय जिसके लिए 200 करोड़ का केंद्र सरकार भारी भरकम बजट रखती है। भारत के माननीय राष्ट्रपति Visitors में आते है। साल में लगभग 4000 से अधिक डॉक्टरीएट, 3500 के करीब पोस्ट ग्रेजुएट, 1100 ग्रेजुएट और 650 एकेडमिक स्टाफ भारी भरकम वाला विश्वविद्यालय अपनी स्थापना के लगभग 53 साल के बाद भी अपनी सोच को क्यों नहीं बदल पा रहा है? कभी अफजल गुरु की फांसी के पक्ष में, कभी पाकिस्तान के पक्ष में, कभी भारत के टुकड़े करवाने के पक्ष में और हाल ही में जो विवाद सामने आया। भारत की एक जाति विशेष के बारे में “भारत छोड़ो” व अन्य भद्दी टिप्पणी की। पूर्णत: वामपंथी सोच रखने वाला यह विश्वविद्यालय विश्व में वामपंथ के लगभग समाप्ति के समय में भी अपनी सोच को न बदल पाना किसी गहरी साजिश का नतीजा लगता है। 


2014 के केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद देश में एक हिन्दुत्ववादी वातावरण बनाने का प्रयास मीडिया के सभी साधनों द्वारा किया जा रहा है और ऐसा प्रचार किया जा रहा है कि केंद्र सरकार विश्वविद्यालयों व अन्य शैक्षणिक संस्थाओं का भगवाकरण कर रही है। पिछले वर्ष नई शिक्षा नीति के आने पर भी वर्तमान सरकार पर इस प्रकार के आरोप लगने लगे। किन्तु नोटबंदी, GST, धारा 370, पुलवामा, तीन तलाक आदि बड़े फैसलों को लेने वाली सरकार, “जे.एन.यू.” के खिलाफ सख्त कार्यवाही करने में असमर्थ क्यों हैं। यह कहीं न कहीं चिंता का विषय है। सख्त फैसले लेने में वर्तमान सरकार को काफी सक्षम माना जाता है। फिर भी सरकार की नाक तले दक्षिण दिल्ली के पोश इलाके में 1000 एकड़ में बसा यह विश्वविद्यालय कैसे राष्ट्रविरोधी और सरकारविरोधी गतिविधियों में लिप्त हो जाता है। “जे.एन.यू.” के संविधान में मूलभूत परिवर्तन करके नीतिबद्ध व समयबद्ध तरीके से इस विश्वविद्यालय का अगर मैं कहूँ कि जीर्णोद्धार करना पड़ेगा तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। वरना थोड़े थोड़े दिन में जख्म में पड़ी मवाद की तरह इस विश्वविद्यालय में समाज विरोधी, राष्ट्रविरोधी और सरकारविरोधी गतिविधियाँ चलती रहेंगी। सरकार ने समय रहते उचित कदम नहीं उठायें तो आम आदमी के दिमाग में यही रहेगा कि कही “जे.एन.यू.” का रोग लाइलाज तो नहीं बन गया।


                                                      शरद गोयल

Comments

Rated 0 out of 5 stars.
No ratings yet

Add a rating
bottom of page