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क्या हिंदू धर्म की गरिमा को हिंदू ही ठेस पहुँचा रहे हैं?

Writer's picture: शरद गोयल शरद गोयल

Updated: Sep 21, 2024

दरअसल तो यह विषय बहुत ही संवेदनशील है क्योंकि आज के माहौल में धर्म पर लिखना व बोलना किसी भी विवाद को जन्म देने के बराबर है । किंतु किसी व्यक्ति के संज्ञान में कोई उचित या अनुचित बात आती है तो उसको समाज के सामने लाना बहुत आवश्यक है । अन्यथा त्रुटियों को पता नहीं चलेगा । शनिवार को शिवरात्रि को वो त्यौहार था जिसमें भगवान शंकर जी पर अलग-अलग नदियों का जल लाकर चढ़ाया जाता है जिसको सामान्य भाषा में कावड़ कहा जाता है । पिछले कुछ दशकों में कावड़ लेकर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है और कावड़ लाने के तरीके में भी बहुत बदलाव हुआ है । आज से लगभग 40 साल पहले मुझे श्रावण मास में चार कावड़िये मिले, उन दिनों बहुत कम लोग कावड़ के बारे में जानते थे । मैंने उन चारों को रोककर पूछा तो उन्होंने मुझे एक कागज पर लिखा दिखा दिया जिस पर लिखा था कि हम हरिद्वार से गंगाजल लेकर आए हैं और जब तक जल को अपने गांव के मंदिर में शिव पर चढ़ा नहीं देंगे तब तक मुंह से बोलेंगे नहीं । क्योंकि तब तक हम मन ही मन में ओम नमः शिवाय का जाप कर रहे हैं ।


मैं उनके परिश्रम और उनकी भावनाओं को नमन करता हूँ । आज कावड़ वालों को देखकर उनकी याद आती है । आज अगर वो आज के इस दृश्य को देख रहे होंगे तो उनके मन में क्या विचार आ रहे होंगे ।


सबसे ज्यादा दुर्भाग्यजनक स्थिति है कि हिंदुओं ने धर्म को जानने का प्रयास नहीं किया । आधा अधूरा जो सुन लिया उसी को अपना लिया और उसमें भी जो हमें अपने को लाभकारी लगा उसको बहुत जल्दी पकड़ लिया ।

भगवान शंकर और पार्वती के बारे में जिस तरह के भजन कावड़ यात्रा के दौरान कावड़िये सुन रहे थे वो सच में शर्मनाक थे । सभी भजनों में शंकर भगवान को नशेड़ी, भगेड़ी, चरसी और  सुरफा पीने वाला बताया गया । भद्दे-भद्दे गाने गाए जाते हैं । यहां तक कि बहुत सी जगह पर मंच बनाकर महिला और पुरुष भगवान शंकर और पार्वती जी का रूप बनाकर उनका मजाक व भद्दे शब्दों का इस्तेमाल करते रहे । एक गाने में पार्वती जी अपनी सखियों को कह रही है कि मेरा पति नशेड़ी है और सारा दिन नशा करके पड़ा रहता है और इस तरह के शब्दों वाले भजनों को लाखों की तादाद में सुनने वाले हिंदू भी सुन रहे थे और आनंद भी ले रहे थे ।  कमोपेश यही स्थिति सभी गानों में थी । कानफाडू म्यूजिक का यदि भावार्थ ऐसा होगा तो वो कितना धार्मिक है और उसको सुनने व गाने वाला हिंदू धर्म के प्रति कितना संवेदनशील है यह सोचने का विषय है ।


भगवान शंकर और पार्वती की जोड़ी हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों के लिए आदर्श पति-पत्नी की जोड़ी कहलाती है । यहाँ तक भगवान राम व सीता जी के स्वयंवर के समय भी भगवान शंकर और पार्वती की जोड़ी को साक्षी मानकर उनकी शादी का संस्कार पूरा किया गया ।


अब बात करते हैं भगवान शंकर के नशा करने की । मैं बहुत ज्ञानी भी नहीं हूं और शास्त्रों का अधिक अध्ययन भी नही किया है । किंतु इतना अवश्य जानता हूं जब कथा के अनुसार जब भगवान शंकर ने सागर मंथन से निकलने वाले विष को पीना चाहा तो देवताओं ने उनको रोक दिया क्योंकि वह विष प्रलयकारी था । इसी कारण पूरे ब्राह्मण में वो कहीं नहीं फेंका गया । भगवान शंकर ने उस विष को अपने कंठ में रोक लेने का निर्णय लिया। जिस कारण उनका पूरा बदन नीले रंग का हो गया । तभी वे नीलकंठ कहलाए । इतनी कथा सब जानते हैं । कथा आगे भी है । उस विष का असर शंकर भगवान के शरीर पर फैलने लगा तो ऋषि-मुनियों ने और उस समय के वैद्यों ने पृथ्वी पर जितनी भी कड़वी व जहरीली वनस्पति थी सबको इकट्ठा करके उसका अर्क निकालकर भगवान शंकर को नियमित रूप से पिलाया । जिसमें भांग, धतूरा, आंकड़ा और ना जाने कितनी जहरीली वनस्पति को मिलाकर उनको नियमित रूप से पिलाया ।


जिसके कारण वो काफी समय तक निंद्रा की मुद्रा में रहे । धर्म का मजाक बनाने वालों ने इस घटना को भगवान शंकर के नशेड़ी होने का बिना कोई दिमाग लगाए कारण बना लिया । दरअसल युवा पीढ़ी का कोई दोष नहीं है । दोष है हमारे बुद्धिजीवियों का । उनका यह दायित्व है कि इस तरह की भ्रांतियां व दुष्प्रचार अपने संज्ञान में आते ही युवा पीढ़ी के दिमाग से निकाले । अन्यथा वो दिन दूर नहीं जब हिंदू धर्म की गरिमा को समाप्त करने का कलंक स्वयं हिंदुओं पर ही लगे ।


चीफ एडिटर (विचार परिक्रमा)

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