चेन्नई की चेतावनी से सीखे भारत
- शरद गोयल
- Jan 1, 2023
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हाल ही में बाढ़ के कारण हुये विनाश की झलक पूरे देश ने देखी। लगभग 25 हजार करोड़ का नुकसान चार सौ से अधिक मौतें व अप्रत्यक्ष रूप से होने वाले नुकसान जिसकी भरपाई संभव नहीं वह अलग है। सामान्यतः बाढ़ के कारण नदियों मेें अधिक पनी बढ़ने से माना जाता है। लेकिन चेन्नई के विनाश का कारण यह नहीं था या कहिये कि इस विनाश की जिम्मेवार प्रकृति न होकर स्वयं वहां के मानव हैं। समुद्र किनारे बसने वाले चेन्नई व मुंबई जैसे महानगर जिनमें इस प्रकार की समस्या आती है तो उसका कारण प्रकृति न होकर मनुष्य की लापरवाही व कुप्रबंधन है। लगभग यही स्थिति हर साल मुंबई में आती है। समुद्र किनारे बसे इन महानगरों में जलभराव सीधे-सीधे कुप्रबंधन का प्रभाव है। विश्व में हांगकांग व सिंगापोर जैसे और बड़े शहर हैं जहां बारिश भारत के मुकाबले बहुत ज्यादा है लेकिन जलभराव नाम मात्र का भी नहीं है। जरूरत है महानगरों की जल निकासी व्यवस्था को सुचारू बनाना। उस व्यवस्था में आने वाले अवरोधों को दूर करना व इस तरह के कार्यक्रम की निर्धारित राशि को पूरी ईमानदारी से इस योजना में लगायें। भारतवर्ष की भौगोलिक परिस्थितियां विश्व के अन्य देशों से भिन्न हैं। भारत में दक्षिण में तीन तरफ से समुद्र का पानी उपलब्ध है। उत्तर में हिमालय की एक बड़ी पर्वत श्रृंखला , पूर्व से पश्चिम तक फैली हुयी है। मध्य में विध्यांचल के पठार मौजूद हैं। पूर्व में उगने वाले सूर्य की उष्णता, समुद्र के जल को भाप बनाने में सहायक है। जो अंत में पहाड़ों और वृक्षों की शीतलता पाकर पुनः जल के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। भारत में नदियों के 20 से अधिक समूह हैं जिनके माध्यम से जल समुद्रों तक पहुंचता है। इतना विशाल प्राकृतिक नेटवर्क किसी भी देश मंें मिलना संभव नहीं और इस देश की विडंबना देखिये कि देश में वर्ष के 12 महीने में से लगभग 8 महीने बारिश व बारिश मेनेजमेंट में लग जाते हैं। 3 से 4 महीने बारिश व बाढ़ आती है और बाकी के चार महीने उसे ठीक करने में लग जाते हैं। कमोवेश यही स्थिति पिछले 60-70 साल से चल रही है। आसाम, गुवाहाटी के काफी बड़े इलाके में उत्तरी बिहार, ब्रह्मपुत्र, बंगाल का पूर्वी इलाका , बंग्लादेश से मिलते जुलते इलाकों में तो निश्चित तौर पर यह समस्या आती है। हिमालय से निकलने वाली नदियों का पानी नेपाल से बराबर छोड़ा जाता है। केन्द्र सरकार राज्य सरकार को दोष देती है और राज्य सरकार केन्द्र सरकार को दोष देती है। नदियों का राष्ट्रीयकरण करके इनको आपस में समेट कर इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है।जब तक देश में जल संचय की व्यवस्था ठीक नहीं होगी तब तक कैसे 12 महीने पानी उपलब्ध होगा। सभी उन्नत देशों ने अपने यहां जल सिंचाई की व्यवस्था की है। देश में जल के भण्डारण की क्षमता 220 क्यूसिक है। यदि यह क्षमता बढ़ाकर 440 क्यूसिक कर दी जाये तो देश में बाढ़ व पानी के अभाव की समस्या कम हो सकती है, यह नेशनल ग्राउण्ड वाटर बोर्ड की रिपोर्ट है। दरअसल यह वाटर मेनेजमेंट की कमी से है।इस पानी को विनाश की बजाय विकास में लगायें । जितने भी बड़े शहर हैं, कहीं पर भी पानी की निकासी की व्यवस्था नहीं है। इसलिये बरसात में हर जगह बाढ़ की स्थिति बन जाती है। पेरिस में जो विश्व स्तर पर जलवायु की चर्चा हुई उस पर जलवायु परिवर्तन से भारत खुद लड़ सकता है, यदि हम अपने प्राकृतिक संसाधनों को सुव्यवस्थित कर सकें। अब तो ऐसा लगने लगा है कि बाढ़ की समस्या को केन्द्र व राज्य सरकारों ने हर साल होने वाला एक इवेंट मान लिया है। इवेंट खत्म होने के बाद सरकार फिर अगले साल की बाढ़ व बारिश का इंतजार करती है। इस पूरे क्षेत्र के लोग भी यूं कहिये कि इस समस्या के आदी हो गये हैं।
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