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‘जे. एन. यू. प्रकरण- सागर मंथन से अमृत निकलेगा’

Writer's picture: शरद गोयल शरद गोयल

पिछले एक हफते के में देश के अंदर जैसे एक तूफान आ गया और उस तूफान का नाम है जे.एन.यू। देश के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक जवाहर लाल नेहरू यूर्निवसिटी में गत 9 फरवरी को जो कुछ हुआ उसने सवा सौ करोड़ भारतीयों की नींद हराम कर दी। देश की एकता और अखण्डता में विश्वास करने वाले सभी धर्म व साम्प्रदाय के लोग कहीं न कहीं इस ओर विचार कर रहे हैं कि यदि राजधानी में एक विश्वविद्यालय में भारत विरोधी मानसिकता पनप रही है तो देश के भविष्य का क्या अंजाम होगा। अचरज की बात यह तो है ही लेकिन दिल को दहला देने वाली बात इस सारे प्रकरण पर देश की सभी प्रमुख पार्टियों ने जो कि आज विपक्ष में है प्रतिक्रिया की। यदि हम वामपंथी दलों की बात करें तो कमोवेश उनका तो इतिहास इसी प्रकार की पृष्ठभूमि का है। दुर्भाग्य है इस देश का कि पूरे विश्व से लगभग खत्म हो चुके वामपंथी विचारधारा भारतवर्ष में अभी भी व्यवस्थाएं कहीं न कहीं दीमक की तरह लगी हुई है। इस विचारधारा को पश्चिम बंगाल से नष्ट करने के लिये वहां का नागरिक बधाई का पात्र है। इसके बाद बात करते हैं कांग्रेस की तो राहुल गांधी से किसी ऐसी परिस्थितियों में कोई परिपक्व वक्तव्य की शायद देश का कोई नागरिक करता हो यहां तक कि कांग्रेस भी नहीं। सवा सौ साल से भी अधिक पुरानी देश पर एक मुश्तक लगभग 60 साल तक राज करने वाली पार्टी किन्ही परिस्थितियों में बयान देने के लिये एक जिम्मेदार व परिपक्व नेता नहीं कर पायी। इससे ज्यादा उस राजनैतिक पार्टी का दिवालियापन क्या होगा ? यदि हम केजरीवाल , नीतिश कुमार इत्यादि अन्य विपक्षीय दलों की प्रतिक्रियाओं की बात करें तो ऐसा लगता है कि सभी ने सिर्फ व सिर्फ विरोध की राजनीति करने का बीड़ा उठाया हुआ है। राजनीति में विचारों में मतभेद होते रहते हैं लेकिन हर चीज का विरोध करना एक स्वस्थ प्रजातंत्र की पहचान नहीं है। जे. एन. यू. में जो चल रहा है, वह रातों रात घटने वाली कोई घटना नहीं है बल्कि राष्ट्रविरोधी विचारधारा का परिणाम है जो सालों से वहां पनप रही है। यदि हिन्दुस्तान को गाली देना व राष्ट्रविरोधी नारे लगाना हिन्दुस्तान को बर्बाद करना और राष्ट्रविरोधी आतंकवादी के समर्थ में नारे लगाना अभिव्यक्ति की आजादी है तो एक आम हिन्दुस्तानी का यह मानना है कि यह आजादी तुरंत छीन ली जानी चाहिये । महिषासुर दिवस मनाने व नक्सलवादियों द्वारा मारे गये 24 जवानों की तारीक को खुशी में सेलीब्रेट करने की सोच को अभिव्यक्ति की आजादी कहने वालों पर भी राष्ट्रद्रोह का मुकद्दमा चलना चाहिये। देश का आम मुसलमान देश के प्रति श्रद्धा और विश्वास रखता है। हाल ही में सियाचिन में शहीद हुये 10 जवानों में से एक जवान मुसलमान था जिसने देश की खातिर बर्फ की पहाड़ियों में अपनी जान दे दी। तो हम ऐसा नहीं कह सकते की देश पर कुर्बान होने वाले मुसलमानों की कोई कमी है लेकिन चन्द सिरफिरे लोग जिनको वोट बैंक के लालच में राजनेता पालते रहते हैं, वह पूरी कोम को बदनाम करने में लगे हुये हैं। इस विषय पर राजनैतिक रोटियां सेंकने वाले दल यदि अपनी रोटियां सेंकना चाहते हैं तो सेंके ताकि देश के सामने एक बार सबका चेहरा सामने आ जाये और अभिव्यक्ति की आजादी का सहारा लेकर राष्ट्रविरोधी कार्यवाही को समर्थन देने वाले राजनेताओं का असली चेहरा भी सामने आ जाये। मैं आपको याद दिलाता हूं राहुल गांधी की कांग्रेस के ही दिगविजय सिंह ने बटाला हाउस इनकांउटर को फर्जी इनकांउटर कहा जिसमें हमारे दिल्ली के एक सब इंस्पेक्टर सहित कई लोग मारे गये थे। अमेरिका द्वारा पाकिस्तान में लादेन के मारे जाने पर लादेन को लादेन जी कहकर संबोधित किया था। हाल ही में मणिशंकर अय्यर ने पाकिस्तानी टी. वी. चैनल के साक्षात्कार में पाकिस्तान की भूमि पर बैठकर कहा कि आप हमें दोबारा सत्ता में लाइये हम हिन्दुस्तान पाकिस्तान के सम्बंध अच्छे कर देंगे। लेकिन मुझे लगता है कि देशवासियों को अब समझ लेना चाहिये कि अभिव्यक्ति की आजादी व देश द्रोह में क्या फर्क है और कौन राजनेता इनके पक्ष में हैं और कौन विरोध में । जे. एन. यू. को तुरंत प्रभाव से बंद करके सेना के हवाले कर देना , राष्ट्र की एकता व अखण्डता को जीरो टोलरेंस पर रखना होगा। कोई भी संस्थान खासतौर से शिक्षा संस्थान चाहे वह जामिया मिलिया हो, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय हो या बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय। किसी भी धर्म जाति व वर्ग की संस्था को किन्हीं भी परिस्थितियों में राष्ट्रविरोधी विचारधारा पनपने देने का अड्डा नहीं बनने देना चाहिये। चाहे उनके अंदर खुफिया ऐजेंसी के लोग तैनात रहें। अच्छा होता यदि देश के सारे राजनेता दल एक स्वर में इस घटना के भत्र्सना करते और कसूरवालों पर सख्त से सख्त कार्यवाही की मांग करते। सभी राष्ट्रविरोधी सोच रखने वाले लोग भविष्य में कभी भी इस तरह की कार्यवाही करने से पहले चार बार सोचते। जे. एन. यू. की घटना से एक सागर मंथन हो रहा है। आम नागरिक को इस पूरी घटना पर अपनी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य के खातिर बड़ी गौर से व ध्यानपूर्वक ध्यान देना होगा और मुझे यकीन है कि सागर मंथन से अवश्य अमृत ही निकलेगा।

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