ताकि मजाक न बने सके ‘घोषणा पत्र’
- शरद गोयल
- Nov 1, 2024
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जैसे ही चुनावों का समय आता है, उसी समय एक अहम औपचारिकता सभी राजनीतिक दलों व उम्मीदवारों द्वारा की जाती है और वह है चुनावी घोषणा पत्र जारी करना, और वह है चुनावी घोषणा पत्र में राजनैतिक पटट्ीं वह सब बातें उजागर करती है जिनको आधार बनाकर आगे आने वाले 5 साल के लिये वह जनता से वोट मांगे, मुझे नही पता कि यें कानूनी प्रावधान है यह इन दलों द्वारा जनता को मूर्ख बनाने व जनभावनाओं के साथ खेलने का एक जरिया बनाया हुआ है, लेकिन इस डिक्लिेरेशन पत्र को चुनाव आगे को अत्यन्त गम्भीरता से लेना चाहिय,े इतना ही नहीं चुनाव आयोग को पिछले चुनावों में इन दलों द्वारा किये गये घोषणा पत्रों की भी समीक्षा होनी चाहिये कि उस चुनाव में क्या घोषणायें की थी और वह किन हालातों के चलते पूरी नहीं कर पाये, प्रथम दृष्टा में जैसा लगता है कि यह घोषणा पत्र जनता को गुमराह करने का, और उनकी भावनाओं से खिलवाड़ करने का एक दस्तावेज बन गया और किसी भी राजनैतिक पार्टी की इस दस्तावेज के प्रति कोई जबाव देही नहीं, तो क्या यह दस्तावेज महज एक दिखावा मात्र है, क्यों न भारत के राष्ट्रपति व चुनाव आयोग इसकी और गंभीरता से विचार करें, इसके लिये चाहे कानून में भी बदलाव करने की आवश्यकता हो तो उसे करना चाहिये चुनाव घोषणा पत्र में दिये गये सभी मुद्दों को संबधितं पाट्र्री सख्ती से लागू करें, यह सुनिश्चित करने के लिये चुनाव आयोग सख्त निगरानी रखें, पिछले कुछ सालों में इस दस्तावेज के माध्यम से जो व्यवस्था का मजाक बनाया गया है वह भी ध्यान देने योग्य है, पिछले लगभग 68 साल से हर चुनावी पार्टियों गरीबों को मकान दे रही है और बिना मकान के गरीबों की तादात भारी मात्रा में बढ़ती जा रही है, इसी प्रकार हर व्यक्ति के लिये श्क्षिा की गारंटी, हर नागरिक के लि ये स्वास्थ्य की गांरटी, हर नौजवान को रोजगार की गारंटी, ऐसे मुद्दे हैं जो सभी पार्टियों के घोषणापत्र मे सामान्य है। लेकिन यदि ध्यान देखें तो देश में आश्क्षिित बेरोजगार और बिना स्वास्थ्य सुविधा के धक्के खाते लोगों का जमात दिन प्रतिदिन बड़ती जाती है आखिर यह विरोधाभाष क्यों है ये मूलभूत चार चीजें सभी पार्टियो, चाहे वह क्षेत्रीय हों या राष्ट्रीय चुनावी घोषणा पत्रों में हैं, और यह समस्यायें आज देश के सामने विकराल रूप लेकर खड़ी हुयी है, किसी दल ने भी इन समस्याओं को सुलझाने के लिये गंभीर प्रयास किया होेता तो आज देश की देशा व दिशा शायद कुछ और ही होती, लेकिन दुर्भाग्यवश मूलभूत इन समस्याओं के बजाय कोई दल है मुफ्त में लेपटाॅप बांट रहा है, तो कोई साईकिल बांट रहा है कोई मुफ्त में स्फूटी देने का बादा कर रहा है, कोई युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देने का वादा कर रहा है, एक दल ने तो बेरोजगार युवाओं को मुफ्त में बस मंे यात्रा करने का भी वादा कर डाला, 65 साल राज करने के बाद यदि इन दलों को 50-50 पृष्ठ के अपने घोषणा पत्र देने पड़ते हैं और दुर्भाग्य की बात यह है कि जनता इन सभी घोषणा पत्रों पर विश्वास करके ऐसे दलों के झूठे बहकावें में आती है और इनको सत्ता के करीब पहुंचाती है, एक रू0 किलो चावल, गेंहूँ, और मुफ्त की चीजों को मुहैया कराने वाले वादांे ने इस देश का तो भला नहीं किया लेकिन इन वादो को करके सत्ता तक पहुंँचने वाले राजनैतिक लोगों का व्यक्तिगत भला अवश्य हो गया है, बेरोजगारी भत्ता जैसी योजनाओं ने इस देश में एक निष्क्रिय लोगों की एक बहुत बड़ी जमात खड़ी कर दी है, अच्छा हो अगर सत्ता में आने के बाद ये दल इस तरह की योजनाओं जिनसे समाज में निष्क्रिय लोगों की जमात खड़ी होती हो, उसको करने के बजाय देश के नौजवानों को रोजगार कैसे मिल सके, यह पैसा रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने में लगाये।
चुनाव घोषणा पत्र में घोषित की गयी सारी बाते जनता ध्यानूपर्वक पड़े और इससे पहले चुनावो में उस दल ने क्या घोषणाये की थी उस से उनका मिलान करें, उन घोषणाओं में कितनी योजनाओं को उन्होंने लागू किया और कितनी नहीं, उसका मूल्यांकन करें और उम्मीदवारों से जवाब मांगे, कि जो योजनायें उन्होंने पिछले चुनाव में घोषित की थी वह क्यो नही पूरी की गयी, मुझे ऐसा लगता है, चुनावी घोषणा पत्र जैसे ही राजनैतिक पार्टियों ने एक मजाक का विषय बना दिया है, जनता भी इसे मात्र मजाक का ही विषय मानती है, अन्यथा देश के प्रथम चुनाव में गरीबी खत्म करने का वादा 65 साल बाद हो रहे चुनावों में नही चला रहता, चुनाव आयोग को इस ओर ध्यान देना चहिये, राजनैतिक पार्टियों की जवाब देही होनी चाहिये और राष्ट्रपति राज्यपाल की लोकसभा व विधान सभा भंग होने से पहले एक लेखा जोखा सौंपना चाहिये कि हमने अपने घोषणा पत्र में कितनी बाते कही भी उनमें से कितनी हमनें पूरी करी हैं और जो पूरी नही हूुई वह किन कारणों से नहीं हुयी मेरा मानना है, यह दस्तावेज एक अत्यन्नत गंभीर व महत्वपूर्ण दस्तावेज है, और इसमें यह प्रावधान होना चाहिये कि यदि कोई दल से दस्तावेज में घोषित की हुयी बातों में से यदि 75ः बाते पूरी नही की गयी तो उस दल की मान्यता खत्म हो और इतना ही नही आम मतदाता को यह अधिकार होना चाहिये कि सम्बंधित पार्टी व उम्मीदवार के खिलाफ आई.पी.सी. की धारा के तहत एफ.आई.आर. दाखिल करा सके, मैं पूरे विश्वास व दावे से कहता हूॅं कि इस दस्तावेज की गंभीरता को बनाने के लिये यह कदम आवश्यक है और ऐसा करना चुनावी प्रक्रिया में और सुधार लाने की दिशा में कारगर साबित होगा अन्यथा चुनावी घोषणा पत्र एक मजाक बनकर रह जायेगा।
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