देर से सही, दर्द समझा तो सही आपने
- शरद गोयल
- Jul 5, 2024
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भारत के सर्वोच न्यायालय द्वारा कल दिये गये ऐतिहासिक फैसले में एक ऐसे समाज के एक ऐसे वर्ग को लाभान्वित किया है, जिसके बारे में हमारे समाज में या कहें समाज के ढेकेदारों को सोचने की ना फुर्सत है, न ही कभी आवश्यकता पड़ी, माननीय उच्च्तम न्यायालय ने एक याचिका मके जवाब में अपने फैसले के किन्नरों को महिला और पुरूष के अलावा तीसरी श्रेणी में रखा और बहुत से विशेषाधिकार भी दिये है। शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में इनके सभी प्रकार की सुविधायें देने के लिए माननीय न्यायालय ने सरकारों को आदेश दिये है, इनकी जितनी भी प्रशंसा की जाये कम है, देश का वह बहुत बड़ा वर्ग खासतौर से नयी युवा पीड़ी यह जानती भी नहीं है कि क्रिन्नर कौन है कहां से आते हैं और इनका सामाजिक जीवन कैसा है दर असल रोजमर्रा की आपाधायी में हमें अपने परिवार के सिवा किसी और के प्रति सोचने का सूझता भी नहीं। हम एक ऐसे भौतिक युग में में जी रहे हैं जिसमें हमारी सोच सिर्फ और सिर्फ अपने ऊपर केन्द्रित होकर रह गयी है, यह दुर्भाग्य की बात है, कि हमारे समाज में किन्नर शब्द अभिशाॅप है। प्रकृति ने स्त्री और पुरूष के रूप में दो श्रेणियां सृजित कीं, जिनसे सृष्टि का निर्माण संभव हुआ। लेकिन पता नहीं किन विडंबनाओं ने एक तीसरी श्रेणी सामने ला दी -। किन्नर यह न स्त्री हैं और न पुरूष। ऐसे में सामाजिक संरचना में नकी स्थिति एक अजूबे के रूप में है, जिसने इनका जीवन न केवल कठिन बनाया है बल्कि त्रासदीपूर्ण भी। समाज में जहां हर शख्स की एक अस्मिता है, वहीं यह तबका यानी किन्नर अस्मिताविहीन जीवन जीता है ओर एक दिन गुमनामी की मौत मर जाता है। इसी तरह के उसके कुछ संगी-साथी शायद उसकी मौत पर आंसू बहाते हों बाकी समाज के लिए यह कोई मानयने नहीं रखता। किन्नर के प्रति समाज का यह नजरिया अटपटा सा लगता है क्योंकि हमारे पौराणिक आख्यानों में इनका सम्मानजनक उल्लेख मिलता है। इन्हें नवजात संतानों के लिए शुभ मानने की प्रथा रहीं है। इसके बावजूद किन्नर आज जिन हालात में जीवन जीते हैं वह समाज की निष्ठुरता ही उजागर करता है। न तो उनकी कोई अस्मिता है और न ही उनके जिम्मे कोई काम। इसीलिए किन्नर को यह अहसास होता हे कि ना तो उसको गरिमापूर्वक जीवन जीने का अधिकार है और ना ही सामान्य मनुष्य की तरह समाज में उसके लिए कहीं कोई काम ही मौजूद हे। उसके जीवन जीने और काम करने के अधिकारों का उल्लंघन सामान्य बात है। लेकिन इसको लेकर कहीं कोइ्र मामला दर्ज नहीं होता, कहीं किसी घटना का उल्लेख होता भी है तो किन्नरों को दी दोषी ठहरया जाता हैं इससे बड़ी विडंबना क्या होगी? हर मामले और मुद्दे पर हाय-तौबा मचाने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ता भी इस मामले में रहस्यमय चुप्पी साधे हुए हैं। यानी समाज में किन्नर निहायता ही अकेले हैं, उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं।
ऐसी विषम और कठिन परिस्थितियों में किन्नरों ने जीवन जीने के कुछ उपाय ईजाद किए है। किसी के यहां संतान उत्पन्न् होने पर किन्नरों की टोली पहुँचती है और बच्चे को आशीष देकर वह नाच-गाकर कुछ बख्शीश हासिल करती है। लेकिन यह भी बहुत लोगों को बर्दाश्त नहीं होता। इसीलिए सामान्यः किन्नरों को लोग अपराधी ही ट्रीट करते हैं किन्नरों को एक और स्तर पर काफी मुसीबतें झेलनी पड़ती है, वह है सेक्स। यह भी विड़ंबना की पराकाष्ठा ही है कि कुछ लोगों की विकृत इच्छाओं के चलते किन्नरों को सेक्स वर्कर का काम भी करना पड़ता है। इस मामले में भी उनका तरह-तरह से शोषण होता है। लेकिन यहां भी किन्नर की मजबूरी उसके शोषण का निमित्त बनती है। कुछ किन्नरों को आजीविका के लिए इसी का सहारा लेना पड़ता है। यह एक तथय है कि प्रत्येक किन्नर को जीवन में कभी न कभी यौनकर्मी की भूमिका निभानी ही पड़ती है।
लेकिन पिछले एक दशक में कुछ बदलाव हुए हैं। किन्नरों न कई जगहों पर क्रांति सा माहौल रच दिया। समाज में उपेक्षित होने के बावजूद किन्नरों ने राजनीति में अपनी हिस्सेदारी दर्ज कराई है और हमारे राजनेताओं से ऊबे और निराश लोगों ने किन्नरों को व्यापक समर्थन देकर पार्षद और विधायक भी बनाया है। यह हमारे राजनीतिकों के खिलाफ कुड़ी टिप्पणी तो है लेकिन किन्नरों के त्रासदीपूर्ण जीवन का समाधान नहीं। इक्का-दुक्का शबनम मौसी एक प्रतीक हैं लेकिन हालात में बदलाव का प्रमाण नहीं। किन्नर जीवन को एक संरचित आकार देने के लिए समाज को ही आगगे आना होगा, तभी कोई रास्ता निकलेगा।
अब जबकि माननीय उच्चतम न्यायालय ने एक अभूतपूर्व फैसला देकर किन्नरों को समाज की मुख धारा में शामिल किया है, अब यह देखना है कि समाज और समाज के ठेकेदार और हमारी सरकारें कितीन पहल करते हैं कि वर्षों से उपेक्षित समाज के इस वर्ग का कुछ उत्थान हो जाये, और एक बहुत बडी माननवीय शक्ति को समाज के कार्य के उपयोग में लिया जा सके, ऐसे बहुत सारे देश है, जहां पर किन्नर समुदाय समाज की मुख्य धारा में हैं, और उनको भी यह सभी अधिकार प्राप्त हैं जो आम नागरिक को है।
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