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बंद करो यह भौंडा मजाक

  • Writer: शरद गोयल
    शरद गोयल
  • May 12, 2023
  • 2 min read

हाल ही में टेलीविजन के एक चैनल पर बड़ी तेजी से मशहूर हुये एक हास्य कार्यक्रम काॅमेडी नाइट विद कपिल को देखकर ऐसा महसूस होता है कि हमारे समाज में दिन प्रतिदिन संवेदन शीलता की अत्यन्त कमी होती जा रही है, और जनसाधरण किसी भी कार्यक्रम के परिणाम और दुष्परिणामों से अनभिज्ञ हो गया है, यदा-कदा धार्मिक प्रतीक चिन्हों व देवी देवताओं की सूरत और वस्त्रों को लेकर तो भारतीय चलचित्र व दूूरदर्शन के कार्यक्रमों में भोंडापन देखनें को मिलता ही रहता था लेकिन इस हास्य के कार्यक्रम को देखकर तो ऐसा महसूस होता है कि दर्शक दर्शक क्या देखना चाहते हैं, ये न दिखाने वाले को पता है, और नही खुद देखने वालों को पता है, इस सीरियल में तीन महिला पात्र है। एक दादी, जो हमेशा शराब में टुल रहती है, दिखाया गया है, दुनिया की कोई जाति, समाज व वर्ग ऐसा नहीं है, जहां पर दादी का सम्मान न किया जाता हो, लेकिन इस सीरियल में लगातार हर एपिसोड में दादी को शराबी और ओदा दिखाते ही नहीं वल्कि कपिल उन पर घटिया किस्म के कटाक्ष भी कसते हैं, दूसरा महिला पात्र कपिल की बुआ है, जिसको एक जुआरी और आबारा प्रकार की औरत दिखाया गया है, उस पर किये जाने वाले कपिल के संवाद भी कभी-2 सारी सीमायें लाॅघ देते हैं, तीसरा चरित्र कपिल की पत्नी है, कपिल अपनी पत्नी को तो अपमानित करते ही है, अपितु उनके पिता के ऊपर भी इस तरह की टिप्पणी करते हैं, जो शायद किसी भी सभ्य समाज में स्वीकारी जाती हो।


लेकिन समाज का एक पहलू यह भी हैे कि महिलाओं और बुजर्गाें का अपमान करने वाला यह कार्यक्रम दिन प्रतिदिन प्रचलित भी हो रहा है या व्यवसायिक भाषा में इसकी टी.आर.पी. दिन प्रतिदिन बढ़़़़ती ही जा रही है, एक बात बिल्कुल साफ है कि दूरदर्शन व सिनेमा में दिखाये जाने वाले कार्यक्रम आम जन मानष की जीवन शैली को अत्याधिक प्रभावित करते हैं, इसी कारण से विज्ञापन का इतना बड़ा मायाजाल हमारे चारो तरफ फैला हुआ है, लेकिन यदि इस सारे घटनाक्रम में आवश्यकता इस बात की जरूर है, कि इन प्रचार माध्यमों के माध्यम से जन साधारण को ऐसा कुछ ना परोसा जाये जिससे आने वाली पीडियों में गंदे संस्कार व महिलाओं और बुर्जगों के प्रति सम्मान का भाव ही खत्म हो जाये, दरअसल विस्तार में देखे तो दूरदर्शन पर दिखाये जाने वाले कार्यक्रमों मे ंअच्छे संस्कार और शिक्षा का पूर्ण रूप से अभाव है, चाहे वह सास और बहू का रिश्ता हो, पति और पत्नी का रिश्ता हो, ननद और भावी का रिश्ता हो, भाई-2 का रिश्ता हो या कोई अन्य रिश्ता हो, दूरदर्शन के कार्यक्रम ने इन सभी में गिरावट की सभी सीमायें तोड़ दी हैं। अब यह आम दर्शक को सोचना होगा कि समाज को गलत दिशा मंे ले जाने वाले इस प्रकार के कार्यक्रम को कब तक पंसद करेगें और कब तक यह घी में जहर की तरह यह हमारे समाज मं फैसला रहेगा, क्योंकि इस जहर को ना कोई च्प्स् ना कोई त्ज्प् ना कोई शिकायत रोक सकती है, यह तो आम दशकों को ही इस तरह के कार्यक्रमों का बहिष्कार करना होगा, तभी इस जहर को परोसने के जिम्मेदार लोगों को समक्ष आयेगी।


शरद गोयल

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