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“बन्द हो ये चुनावी बन्दरबांट” माननीय उच्चतम न्यायालय ले संज्ञान

Writer's picture: शरद गोयल शरद गोयल

Updated: Jan 2

पिछले कुछ वर्षों से देश की सभी राजनीतिक दलों ने चुनाव के समय लोगों को मुफ्त चीजें देने के आश्वासन करने का जैसे रिवाज सा बना लिया है। और बनाएं भी क्यों ना, इन्हीं झांसों में आकर देश का अधिकतर वोटर इन राजनीतिक दलों को वोट दे देता है। सबसे पहले इसकी शुरूवात जयललिता ने की। उन्होंने सभी वोटरों को 1 रू. किलो चावल की घोषणा की। फिर उसके बाद उन्होंने ही महिलाओं को साड़ियां व चप्पल मुफ्त बांटी। फिर तो जैसे राजनीतिक दलों के हाथ चुनाव रूपी परीक्षा में पास होने की कंुजी हाथ लग गई हो। जो दल पहले इस प्रकार की घोषणाओं से परहेज करते थे उन दलों को भी इस प्रकार की घोषणाओं का सहारा लेकर सत्ता में आना पड़ा। कोई दल बच्चों को मुफ्त लैपटाॅप, स्कूटी, साइकिल आदि देने का प्रलोभन करता था। तो कोई अन्य वस्तुओं का प्रलोभन देता रहा। दिल्ली विधानसभा की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी ने तो सारी सीमाएं तोड़कर नागरिकों को मुफ्त में बिजली और पानी देने का वादा कर डाला। नतीजा ये हुआ कि उसने दो दो बार दिल्ली विधानसभा पर अपना कब्जा तो कर ही लिया ही। साथ ही साथ पंजाब में भी अपनी सरकार बना ली। कहीं पर मुफ्त में मकान बनाए जाने की घोषणा हो रही है तो कोई दल अल्पसंख्यकों को लुभाने के लिए उच्चशिक्षा के लिए लाखों रू की सब्सिडी देने की बात करता है। तो दूसरा दल बिटिया की शादी में लाखों रूपया देने का वादा करता है। एक दल ने वृद्धावस्था पेंशन शुरू की तो दूसरे ने उससे दुगना देने का वादा किया।


और सबसे ज्यादा दुखद है कि इस बंदरबांट का भी जातिकरण व धार्मिकरण हो रहा है। आम आदमी पार्टी ने मस्जिदों के मौलानाओं को प्रतिमाह धनराशि देने की घोषणा तो कर ही रखी थी, अब उसके साथ-साथ मंदिर और गुरुद्वारे के पुजारियों व ग्रन्थियों को भी प्रतिमाह 18000 रू व महिलाओं को 2100 रू देने की घोषणा कर दी।


बड़ा सवाल ये है कि उस प्रकार की घोषणाओं से ये राजनीतिक दलं देश को किस ओर ले जाना चाहते हैं। आजादी के 78 साल बाद भीे देश में मुफ्त अनाज व मुफ्त योजनाओं के सहारे जीना पड़ रहा है तो देश के भविष्य की वाकई चिन्ता होती है। दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने की कल्पना करते हैं। यदि देश में कर एकत्रित करने की बात करें तो कोविड के बाद सरकार द्वारा प्राप्त किए गए भिन्न भिन्न करों से, चाहे वह जीएसटी हो या इन्कम टैक्स हो, एक्साइज हो या अन्य कोई में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है किन्तु आम नागरिक को रेल और सड़क यातायात के अलावा और सेवाओं में अत्यधिक सुधार की आवश्यकता नजर आती है। राजनीतिक करदाताओं का ये फाॅरमूला करदाताओं का शोषण तो कर ही रहा है। देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी कोई दूरगामी लाभदायक नहीं है।


सरकारों को कोई भी सुविधा यदि देश के नागरिकों को देनी है तो उसका आधार केवल आर्थिक, क्षेत्रीय व शारीरिक होना चाहिए। आर्थिक रूप से पिछड़े और अति पिछड़े को किसी भी प्रकार की कोई सूविधा देने से कोई परहेज न हो। इसी प्रकार देश के बहुत से क्षेत्र ऐसे है जो आज भी मुख्य धारा से कटे हुए हैं। झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश,उड़ीसा और नाॅर्थ ईस्ट के बहुत से क्षेत्रों में अभी तक विकास का लाभ नागरिकों को नहीं मिला है। ऐसे क्षेत्रों में नागरिकों को आर्थिक मदद देना चाहिए। शिक्षा की मदद देनी चाहिए। स्वास्थ्य की मदद देनी चाहिए। युवाओं को किस प्रकार जीवन यापन करने के लिए सक्षम बनाना है इस पर ध्यान देना चाहिए। ना कि उनको घर बैठकर पैसा देकर निष्क्रिय बनाना चाहिए।


मेरा आग्रह है देश की माननीय उच्चतम न्यायालय से और सरकारों से कि इस ओर गंभीर कदम उठाते हुए उच्चतम न्यायालय अपनी निगरानी में एक कमेटी बनाए जिसमें इलैक्शन कमिशन, योजना आयोग और राजनीतिक दलों के लोग हों। राजनीतिक दल कुछ भी मुफ्त की योजनाओं की घोषणा करने से पहले इस कमेटी से उन योजनाओं को पास कराएं। और उसका देश की अर्थव्यवस्था पर क्या फर्क पड़ने वाला है, इस दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर उस योजना की मंजूरी मिलनी चाहिए। विश्व में अनेकों ऐसे उदाहरण है जिन्होने सत्ता पर कब्जा करने के लिए इस रास्ते को चुना। अंततः उस देश की अर्थव्यवस्था पूर्ण रूप से बर्बाद हो गई और आज वे देश वर्ड बैंक के रहमोकरम पर जिन्दा हैं, क्योंकि कमजोर अर्थव्यवस्था वाले देशों अपने प्रभाव में लाना वर्ड बैंक के लिए सबसे आसान होता है। भारत में ऐसी स्थिति न आए उसके लिए बहुत ही सजग और सतर्क रहने की आवश्यकता है और यह कार्य माननीय उच्चतम न्यायालय की देखरेख में ही हो सकता है, क्योंकि राजनीतिक दलों का उद्देश्य सिर्फ सत्ता प्रप्ति होता है।

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