मशक्कत से होगा मेक इन इण्डिया
- Sharad Goel
- Apr 5, 2024
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माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अब तक के प्रधानमंत्री पद के सफर पर ध्यान डालें तो दो मुख्य नारे उभरकर आते है और वह है स्वच्छ भारत व मेक इन इण्डिया, सही मायनो में तो यदि माननीय प्रधानमंत्री इन दोनों नारों को पूरा करने में सफल हुये, तो मैं व्यक्तिगत तौर पर मानता हूँ कि देश की अधिकतम समस्यायें समाप्त ही नहीं हो जायेगी, अपितु उनका स्थायी समाधान भी हो जायेगा। मेक इन इण्डिया का जो नारा प्रधानमंत्री जी ने दिया, दरअसल हमें उस पर बहुत गहराई से चिन्तन करना होगा, हमें सोचना होगा कि कैसे देश में उत्पादन करने व उत्पादन बढ़ाने का माहौल बनें, वर्तमान की परिस्थितियां देखों तो देश में अधिकतर राज्यों में व्यापारी व उद्योगपतियों को प्रोत्साहित करने वाली नीतियां नहीं है और यदि राज्य सरकारें इस तरह की नीतियां बनाती भी है तो मात्र सस्ती जमीन और टैक्स होलीडे तक ही सीमित रह जाती है, आज के देश के माहौल को देखें, और मैं अपने को एक ऐसा व्यापारी समझ के चलूं जिसने उद्योग लगाना है, तो उसी दिन से मेरा दिमाग तनाव युक्त हो जायेगा, औद्योगिक क्षेत्र में जमीन खरीदने के लिये सरकार से जुगाड़ लगाने से मेरा संघर्ष शुरु होता है, और इसके अलावा यदि मैं निजी जमीन खरीद कर उसका सी.एल.यू. कराता हूँ तो वह भी कोई आसान काम नहीं है, उस अवस्था में भी संघर्ष और बढ़ जाता है, और छोटी-2 चीजें बिजली पानी का कनेक्शन व सेल टेक्स सेल्स में रजिस्ट्रेशन, एक्साइज का रजिस्ट्रेशन से उद्योग शुरु होकर, ई.एस.आई., प्रोविडेन्ट फण्ड, लेबर लाॅज आदि इस तरह की समस्यायें है जो उद्योग लगाने के विचार मात्र से व्यवसायी को डरा देती है। कम शब्दों में कहें तो समस्त सरकारी तंत्र उद्योगों और उद्योगपतियों को परेशान करने, भांति-भांति से डराने में लगा हुआ है। इन समस्याओं में मैंने कहीं पर भी उद्योग स्थापित करने का जिक्र नहीं किया, क्योंकि उसके लिये तो मैं मानसिक रुप से तैयार हूँ और उन सभी का अंदाजा मुझे है कि मैंने क्या उत्पाद बनाना है, वह कैसे बनेगा, कच्चा माल कहाँ से आयेगा, किन-किन मशीनों का प्रबन्ध करना होगा और अन्त में वह कहां बिकेगा, इन समस्याओं से कोई भी व्यापारी परेशान नहीं होता, इनको यदि डराता है, तो केवल और केवल मात्र सरकारी तन्त्र और उन सबके ऊपर कर्मचारी यूनियन की गतिविधियां ओर राजनेताओं की दखलन्दाजी है, यदि ‘मेक इन इण्डिया’ की राह में रुकावटों का बिन्दुवार जिक्र करें तो इसमें अगला बिन्दु कर्मचारियों को हैण्डल करना आता है, पिछले दिनों जिस तरह सरकारों ने भिन्न-2 योजनाओं के तहत नोजवानों को भांति-2 का बेरोजगारी भत्ता, मनरेगा जैसी योजनाओं को ढंग से लागू न करने पर भी देश में बिना काम करें मुफ्त में सरकारी योजनाओं की राशि से जीवन यापन करने वालों की एक लम्बी कतार बन गयी है, यदि हम चीन के व्यापार की बात करें तो आम आदमी की यह धारणा है कि वहां पर लेवर सस्ती है, लेकिन मेरी जानकारी के हिसाब से वहां लेवर सस्ती नहीं है, वहां पर भी उतना ही वेतन (दिहाड़ी) है, जितना हिन्दुस्तान में है, किन्तु वहां के कर्मचारी की मालिकों के प्रति वफादारी एक विश्व प्रसिद्ध मिशाल है, और चीन का एक कर्मचारी भारत के चार कर्मचारियों के बराबर उत्पादन करता है, इतना ही नहीं चीन के कर्मचारियों की जो गंभीरता अपने काम के प्रति जो मैंने देखी है, वह शब्दों में बयान नहीं की जा सकती है।
पूरा सरकारी तन्त्र उद्योगपतियों को सपोर्ट करने में लगा हुआ हो न कि उनको लूटने व हरेश करने में। कर्मचारियों की अपने काम के प्रति गंभीरता के लिये एक सामाजिक माहौल बनाना होगा और इसके लिये कर्मचारियों की क्षमता और कुशलता को बढ़ाने के लिये सरकारों को छोटे-2 पाॅलिटेक्निक बनाने होगे जिनके माध्यम से कर्मचारियों की लाभ के प्रति गंभीरता पैदा हो।
तीसरा और बहुत महत्वपूर्ण बिन्दु, हमें जिस पर चर्चा करनी चाहिये वह यह है कि पिछले कुछ सालों में देश में जो जमीनों के अन्दर कीमतों में भारी वृद्धि हुयी और इस वृद्धि में निवेशकों व उद्योगपतियों का पैसा रातो-रात दुगना हो गया उसने निवेशकों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया क्या यह धन कमाने का आसान तरीका नहीं है, वजाय उद्योग लगाने के एक रुपये का खेत खरीद कर वह खेत सी.एल.यू. के तहत एकड़ों के बजाय फुटो का हो गया और एक रुपये के वजाय दो सौ का हो गया, व्यापारी को पैसा कमाने का इससे आसान तरीका कोई नहीं आया इसी कारण देश के बड़े से बड़े घराने चाहे वह टाटा, विड़ला, रिलायन्स, गोदरेज, महिन्द्रा हो या अन्य बहुत से उद्योगी घराने हों, सभी को यह जादू पसन्द आया बजाय उद्योग स्थापित करके दुनिया जहान की झंझटों में अपने आपको फंसाने को और दुख की बात यह है कि सभी राज्यों की सरकारें पिछले लगभग 15 सालों से इसमें लिप्त रही किसी ने भी इस सी.एल.यू. नामक वायरल का दूरगामी परिणाम नहीं सोचा।
सभी राज्य सरकारों को एक ऐसा वातावरण देश में बनाना होगा कि यदि मेरे विभाग में उद्योग स्थापित करने की आती है तो सरकार के सभी विभाग मेरी सहायता के लिये तत्पर रहें, न कि मुझे परेशान करने के लिये, प्रधानमंत्री जी ने जो गुजरात में सरकार को उद्योगपतियों का का स्पोर्ट सिस्टम के रुप में किया, वहीं स्पोर्ट सिस्टम सभी राज्य सरकारों को अपने यहां बनाना होगा, तभी यह सपना साकार हो पायेगा, अन्यथा कांग्रेस के गरीबी हटाओ का नारा जो कि पिछले साठ सालों में पूरा नहीं हो पाया यह नारा भी इस भ्रष्ट व्यवस्था में कहीं दबकर न रह जाये।
.. लेखक शदर गोयल विचार परिक्रमा पत्रिका के सम्पादक है।
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