यात्रा से और सुधरेगें भारत चीन सम्बंध
- शरद गोयल
- Feb 7, 2022
- 3 min read
Updated: Mar 5
चीन के राष्ट्रपति ‘चिनफिंग’ का भारत दौरा जैसा ही खत्म हुआ तभी भिन्न-2 राजनैतिक दलों द्वारा उस पर प्रतिक्रियायें आनी शुरू हो गयी, दरअसल इस दौरे को सकारात्मक दृष्टि से देखा जाये तो भारत के लिये यह दौरा बहुत ही महत्वपूर्ण व लाभकारी था, दोनों देशों के संबन्धों के अलावा लगभग डेढ़ दर्जन समझोतों पर हस्ताक्षर हुये जिनमें ज्यादातर निवेश से सम्बन्धित है, जिसके तहत चार लाख करोड़ रूपये का निवेश चाइना के द्वारा कराया जायेगा, इसके अलावा मानसरोवर यात्रा का रास्ता, सीमा विवाद और अन्य बहुत से कल्याणकारी योजनाओं पर भी दोनों देशों के समझौते हुये, इन समझौतों के अलावा इस पूरी यात्रा को यदि ध्यान से देखा जाये तो इससे भारत का कद अन्र्तराष्ट्रीय मंच पर और ऊँचा होता है, और सम्पूर्ण एशिया में भारत का दबदबा बढ़ता है, इससे पहले पहले 2005 व उससे पहले भी चाइना के राष्ट्रपति /प्रधानमंत्री भारत आते रहे और भारत के राष्ट्राध्यक्ष चाइना जाते रहे हैं, लेकिन इतने सारे समझौतों का एक बार में सहमत होना यह पहली बार हुआ है,
जहाँ तक सवाल है भारत में राजनैतिक प्रतिक्रिया को तो यहाँ पर विपक्षी दल का हर मुद्दे पर सत्तारूढ़ दल की आलोचना करना जैसे कि एक रिवाज़ सा हो गया है, उनसे हम पूछना चाहते हैं कि जब उनके प्रधानमंत्री चीन गये थे और उनके शासन काल में चीन के प्रधानमंत्री भारत आये थे, क्या तब भी इस तरह के समझौते हुए थे, भारत चीन सीमा पर विवाद की समस्या को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता लेकिन सीमा विवाद को मुद्दा बनाकर चीन से सम्बन्धों को खराब करना यह उचित नहीं होगा पिछले दिनों चीन राष्ट्रपति के दौरान लगभग सभी मीडिया ने चीन की नीयत पर कई सवाल उठाये जो कि बहुत ही गैर जिम्मेदाराना था, यह बात सही है कि 1962 में चीन द्वारा की गयी धिनौनी हरकत को भारत कभी भी नहीं भुला पायेगा किन्तु यह बात अवश्य विचारनीय है कि क्या आज भारत की स्थिति वैसी है जैसी 1962 में थी, यह ची की स्थिति वैसी है, जैसी 1962 में थी, तो उसका जवाब है नहीं; आज दोनों देशों की स्थिति बहुत बदल चुकी है, चीन विश्व की बड़ी ताकतों में सामिल हो गया है और भारत भी किसी प्रकार से कमजोर राष्ट्र नहीं रहा, चीन के कुल उत्पादन का बहुत बड़ा भाग भारत में आयात किया जाता है। इसी प्रकार भारत से भी चीन को निर्यात एक बड़ी मात्रा में किया जाता है, दोनों देशों में अगर व्यापार आंकड़ों की बात करे तो भारत को चाइना व्यापार घाटा 40 करोड़ का है। यानी भारत चाइना से निर्यात के मुकाबले 40 हजार करोड़ का अधिक आयात करता है जो कि सीधे-2 चीन की अर्थव्यवस्था को मजबूत करता है, भारत चीन द्वारा हुए समझौतों से इस बात की उम्मीद जगी है कि भारत की चीन को बड़ी मात्रा में निर्यात करना शुरू कर देगा, और दोनों देशों के व्यापार घाटे में संतुलन आयेगा, इसके अलावा भारी मात्रा में भारतीय चाइना में करोबार कर रहे है, जिसमें लाखों की तादाद में लोगों को रोजगार मिला है, कमोवेश ऐएी ही स्थिति चीन की भी है, इन हालातों में हमेशा चीन को शक की निगाहों से नहीं देखा जा सकता, अगर प्रधानमंत्री द्वारा अच्छी पहल का आगाज किया गया है तो उसे सकारात्मक दृष्टिकोण से देखना होगा, सीमा पर विवाद चीन कितनी जल्दी समाप्त करे उतना ही जल्दी दोनों देशों के सम्बन्ध और अच्छे होंगे, क्योंकि 21वीं सदी टेक्नोलोजी और आर्थिक विकास की है ना कि सीमा विवादों में अपनी ऊर्जा नष्ट करने की, विश्व में कई ऐसे उदाहरण हैं, जो देश सीमा विवादों में नहीं उलझे हुये हैं आज उनको उन्नतिदर काफी अधिक है, आम जन मानस को चीन की नीयत और नीति दोनों पर विश्वास जमेगा तभी जाकर एशिया में एक नयी शुरूआत होगी जिसका दोनों देशोें के भविष्य पर असर पडे़गा।
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