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ये तो अच्छे दिन आने के लक्ष्ण नहीं

Writer's picture: शरद गोयल शरद गोयल

संसद के बजट सत्र में विŸा मंत्री द्वारा पेश किये बजट को समझने मात्र में ही काफी समय लग गया और अगर सारे बजट का निष्कर्श निकालें तो पायेंगे कि जिस सीढ़ी पर चढ़कर विŸा मंत्री जी अच्छे दिनों की शुरूआत करने वाले हैं, कम से कम इस बजट की सीढ़ी पर तो अच्छे दिनों के करीब नहीं पहुंचा जा सकता। बजट एक दस्तावेज है, जिसमें आय और व्यय का लेखा-जोखा मात्र नहीं होता वरन वर्तमान की समस्याओं का समाधान देता है और भविष्य के लिये समृद्धि और समपन्नता के रास्ते दिखाता है। आय और व्यय की राशिओं को इस प्रकार संतुलित करके प्रबंधन करना ही अच्छे बजट के लक्षण होते हैंै, जिनका परिणाम मौजूदा संकटों पर विजय और भविष्य में सहज सम्पन्न जीवन जीने का भरोसा और विश्वास पैदा करना हो।


वर्ष 2015-2016 वितीय वर्ष में केन्द्रीय सरकार का बजट 17,77,477 करोड़ रूपये का है। अर्थात सरकार चालू वर्ष में पूरे वर्ष भर में अप्रैल 2015 से मार्च 2016 तक के दौरान उपरोक्त धन राशि खर्च करेगी। वर्ष 2014-2015 में बजट की यह वास्तविक राशि 1681158 करोड़ रूपये थी और कांग्रेसी शासन के 2013-2014 वर्ष के बजट राशि व्यय 15,59,447 करोड़ रूपये थी। अर्थात 2015-2016 के बजट में व्यय राशि 2014-2015 के बजट से लगभग एक लाख करोड़ और 2013-2014 के बजट की राशि से लगभग दो लाख करोड़ रूपये अधिक है। परंतु योजना व्यय 2015-2016 बजट में 4,65,277 करोड़ रूपये है। 2014-2015 में योजना व्यय 4,67,934 करोड़ रूपये एवं 2013-2014 के कांग्रेसी शासन के बजट में योजना व्यय 4,53,327 करोड़ रूपये है। उपरोक्त जानकारी से एक बात स्पष्ट है कि कुल व्यय 2 लाख करोड़ रूपये से अधिक होने के बावजूद योजना व्यय में बढ़ोतरी मात्र अधिकतम 12 हजार करोड़ रूपये है। क्या इससे विकास को प्राथमिकता देने वाली नियत और नीति का पता चलता है?


इसके अतिरिक्त गैर योजना व्यय 2015-2016 में 13,12,200 करोड़ रूपये है, जबकि 2014-2015 में गैर योजना व्यय 12,13,224 करोड़ रूपये और 2013-2014 के कांग्रेसी शासन के वर्ष में गैर योजना व्यय 11,06,120 करोड़ रूपये है। वर्तमान सरकार का छोटी सरकार और बड़ा शासन का नारा क्या गैर योजना व्यय में 2 लाख करोड़ रूपये से अधिक व्यय करने से ही सार्थक सिद्ध हो रहा है।


देखने की बात यह है कि वर्तमान मोदी सरकार जो 2014 के लोक सभा के आम चुनाव में विकास करने के वायदे के साथ देश की सŸाा पर आसीन हुई है वह योजना व्यय पर कम और गैर योजना व्यय पर अधिक व्यय कर रही है। सरकार ने गत वर्षों में कुल वार्षिक व्यय की राशि में बढ़ोतरी तो अवश्य की है पर योजना व्यय, जो विकास को गति देता है, आम आदमी की सुख सुविधाओं को जुटाने हेतु होता है, कम किया जा रहा है तथा इसके विपरित वह खर्चा जो सरकार चलाने के लिये होता है, जिसका विकास या आम आदमी के हितों से कोई लेना -देना नहीं होता , निरंतर बढ़ाया जा रहा है। विकास , प्रत्येक सरकार का प्रथम दायित्व होता है और इसी लिये सरकार कार्य करती है। सरकारी सूत्रों से पुष्ट उपरोक्त आंकड़ों के आधार पर स्पष्ट होता है कि योजनाओं के क्रियान्वयन पर व्यय होने वाला प्रत्येक एक रूपया सरकारी स्तर पर बनी व्यवस्था द्वारा तीन रूपये खर्च करने पर किया जा रहा है। अर्थात योजना व्यय 4,65,277 करोड़ रूपये को खर्च करने के लिये 13,12,200 करोड़ रूपये की सरकारी व्यवस्था भारत में कायम है।


यही एक बात और भी समझनी आवश्यक हो रही है कि देश में सरकार द्वारा करों के माध्यम से जो राशि वर्ष 2015-2016 के दौरान प्राप्त होगी उसकी मात्रा 9,19,842 करोड़ रूपये ही है एवं करों के अतिरिक्त सरकारी माध्यम से अन्य अतिरिक्त राशि 2,21,733 करोड़ रूपये और मिलेगी। परंतु सरकार का कुल वार्षिक व्यय 17,77,477 करोड़ रूपये है। अतः उसे लगभग 4,86,468 करोड़ रूपये उधार लेना होगा। यहां यह भी समझना जरूरी है कि यह उधार की राशि गत वर्षों से लगातार बढ़ती जा रही है जबकि सरकारें देश में अतिरिक्त विकास होने के दावे भी करती रहती है। समझ में नहीं आता है कि एक ओर विकास का दावा दूसरी ओर उधार की राशि में लगातार बढोतरी। 2013-2014 में सरकार की उधार की राशि 4,61,280 करोड़ रूपये थी जो अब बढ़कर 4,86,468 करोड़ रूपये हो चुकी है।


सरकार द्वारा देश पर उधार की राशि में लगातार बढ़ोतरी ने ब्याज और ऋण की किस्त की राशि में भी बढ़¬ोतरी की है। 2013-2014 में ब्याज और कर्ज की किस्त के रूप में वार्षिक भुगतान की जाने वाली राशि की मात्रा 5,37,231 करोड़ रूपये थी जो 2015-2016 में 6,81,719 करोड़ रूपये होगी। तथा एक आंकलन के अनुसार उपरोक्त ब्याज व कर्ज की किस्त के रूप में की जा रही भुगतान की राशि 49.6 प्रतिशत तक होगी जो कुल राशि सरकार 2015-2016 में कर दाताओं से देश में वसूल करेगी। यहां एक और विषय पर भी चर्चा करना अच्छा होगा कि सरकार एक और देश में कराधान कर, कर वसूल करती है तो दूसरी ओर इन्हीं करदाताओं को अलग-अलग चिन्हित करके करों में छूट देती हैं। मनचाहों को यह करों में दी जाने वाले छूट की राशि भी लाख करोड़ रूपयों में है। 2014-2015 में यह राशि का अनुमान 5.89 लाख करोड़ रूपये है जो 2013-2014 वर्ष में दी गयी राशि से लगभग 39 हजार करोड़ रूपया अधिक है।


भारत एक कृषि प्रधान देश है। 60 प्रतिशत से अधिक आबादी ग्रामीण अंचलों की निवासी है और कृषि पर निर्भर होकर ही अपनी आजीविका प्राप्त करती है। देश में विकास का लक्ष्य इसी क्षेत्र को आधार बना कर तय करना होगा। वर्तमान सरकार ने भी कृषि क्षेत्र के विकास की आवश्यकता अनुभव की है। और इसके लिये प्रमुख रूप से तीन उपाय क्रीयान्वयन करने का भरोसा दिया है। पहला भरोसा है कि किसान को अपने उत्पाद बेचने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर बाजार की व्यवस्था की जाये। विŸा मंत्री ने बजट में इस बाजार की व्यवस्था करने का भरोसा दिया है। दूसरा उपाय है कि देश की खेती की उत्पादकता दर बढ़ायी जाये। इसके लिये देश के 14 करोड़ किसानों को स्मार्ट कार्य तीन वर्षों में दिये जायेंगे जिनमें उनकी भूमि की उत्पादकता की जानकारी उल्लखित होगी। तीसरा उपाय है प्रधान मंत्री सिंचाई योजना जिसके तहत देश के प्रत्येक खेत को सिंचाई के लिये जल उपलब्ध कराया जायेगा और इसके लिये विŸा मंत्री ने चालू वर्ष के बजट में 5300 करोड़ रूपये का आबंटन किया है किन्तु इस आबंटन राशि में गंगा नदी सफाई अभियान है, जल संचय योजना है, सूक्ष्म सिंचाई योजना प्रोत्साहन है, अधूरी पड़ी सिंचाई योजनाओं को पूरा करने के लिये धन उपलब्ध कराना है और प्रधान मंत्री की सिंचाई योजना है। मौटे तौर पर प्रधान मंत्री सिंचाई योजना के लिये 2015-2016 के बजट में 1000 करोड़ रूपया आबंटित है। सरकारी सूत्रों ने पुष्ट किया है कि देश में अभी भी 60 प्रतिशत से अधिक भूमि असिंचित है। यदि इस 60 प्रतिशत से अधिक असिंचित कृषि भूमि को सिंचित क्षेत्र में लाना है और उसके लिये 1000 करोड़ रूपया वार्षिक व्यय करना है तो निश्चित ही लक्ष्य प्राप्ति शताब्दी वर्षों में ही हो पायेगी और क्या यह लक्ष्य तय किया गया है ? वायदों और भरोसों का युग समाप्त हो चुका है । देश का आम आदमी करवट ले चुका है । राजनीति में स्पष्ट बदलाव दिखायी दे रहा है, अब जिन्दगीयां जमीन पर जीना चाहती हैं, जिम्मेदार वर्ग इस तथ्य को समझ लें और वायदों और भरोसों को अमल में लायें। बस इसी में देश, दुनिया और समाज का कल्याण निहित है।

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