top of page
logo.jpg
  • Facebook

श्रद्धा मर्डर कांड, कहीं छावला रेप कांड ना बन जाए।

  • Writer: शरद गोयल
    शरद गोयल
  • Feb 21, 2024
  • 2 min read

Updated: Sep 21, 2024

18 मई, 2022 को दिल्ली में एक दिल दहलाने वाली घटना हुई। एक युवती की बड़ी बेरहमी से एक युवक द्वारा हत्या कर दी गई। बल्कि उसके शव को बेरहमी से काटकर उसके 34 टुकड़े कर दिए गए और उन सभी टुकड़ों को अलग-अलग स्थानों पर फैंक दिया गया। उक्त घटना चार महीने पुरानी थी। श्रद्धा के माता-पिता से कोई संपर्क न होने पर उनके द्वारा पुलिस शिकायत लिखवाने पर सारा मामला सामने आया। अब पुलिस श्रद्धा के कातिल आफ़ताब को दिल्ली के महरौली से सटे जंगल के क्षेत्र में ले जाकर श्रद्धा के शरीर के उन टुकड़ों को ढूंढ रही है जिनको आफ़ताब ने वहां फैंका था यही नहीं पुलिस इस कांड से जुड़े सभी पहलुओं की बहुत ही गंभीरता से जाँच कर रही है।


अभी हाल ही में, 8 नवम्बर को माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा 11 साल पहले 2012 में दिल्ली के छावला गाँव में एक 19 वर्षीय बच्ची के साथ तीन लोंगों ने बलात्कार किया फिर उसके बाद उसको बड़ी बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया। 2014 में इस मामले को निचली अदालत द्वारा दुर्लभतम बताते हुए तीनों आरोपियों को मौत की सजा सुनाई उसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने भी इस मामले को ऐसे ही बरकरार रखा। किन्तु 8 नवम्बर 2022 को माननीय उच्चतम न्यायालय ने साक्षों के अभाव में तीनों आरोपियों को अपराध से मुक्त कर दिया और तुरंत रिहाई के आदेश कर दिए। हालाँकि दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने माननीय सुप्रीम कोर्ट में इस विषय पर एक REVIEW PETITION दायर कर दी किन्तु इस पूरे मामले में दिल्ली पुलिस की अच्छी खासी फजीयत हुई इस कारण श्रद्धा केस में दिल्ली पुलिस कोई भी ऐसी कमी नहीं छोड़ना चाहती जिससे भविष्य में किसी भी अदालत में आरोपी को किसी भी प्रकार का कोई लाभ मिल सके। दरअसल श्रद्धा केस में सबसे बड़ी चुनौती मर्डर वैपन की है और कतल का कोई भी प्रत्यक्षदर्शी नहीं है। इसका यह मतलब कतही भी नहीं है कि मात्र इन चीजों के अभाव से आरोपी को Benefit of doubt मिल सकता है और वो छावला  केस के आरोपियों की भांति किसी भी अदालत से बरी हो सकता है किन्तु पुलिस को बहुत ही संजीवनी से सारे मामले की छानबीन करनी होगी क्योंकि छावला कांड पहला मौका नहीं था जिसमे आरोपी बरी हुए हों इससे पहले भी बहुत से मामलों में हत्या और बलात्कार के आरोपी बरी हो गए।


नोएडा का आरुषि हत्याकांड जिसमे डॉ राजेश तलवार भी अदालत से बरी हुए दरअसल इस तरह के संगहीन मामलों में आवश्यकता है अति आधुनिक तकनीक द्वारा साक्षों को जुटाया जाए और उसके बाद पुख्तातौर पर अदालतों में फास्टट्रैक कोर्ट के माध्यम से इन पर सुनवाई व फैसले हों। अन्यथा पीढित के परिवार और आमजन को यह संदेह हमेशा सताता रहेगा कि इस प्रकार के अनन्य अपराध के अपराधी साक्षों के अभाव में या पुलिस जाँच में हुई त्रुटियों से अदालत से बरी हो जाए और समाज में फिर नया अपराध करने की फिराक में घूमते रहे। 

Comments

Rated 0 out of 5 stars.
No ratings yet

Add a rating
bottom of page