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सत्ता की चकाचैंध में कहीं भटक न जाये संघ

Writer's picture: शरद गोयल शरद गोयल

पिछले एक दशक के काँग्रेस शासन के बाद देश में जो बदलाव की एक हवा चली जो लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी को प्रचण्ड बहुमत के साथ शुरु होते-होते राज्यों की विधानसभाओं तक में बदलाव की आंधी की तरह फैल गयी, हाल ही में हरियाणा व महाराष्ट्र के चुनावी नतीजों ने देश के सभी राजनैतिक पण्डितों का आंकलन व अनुमान झुठला दिया, इस बदलाव के माहोल के साथ देश के राजनैतिक माहोल में कुछ बहुत ही गंभीर प्रश्न उभरकर आये है। सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या लोग आज वाकई भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा और कार्य करने की शैली को पसन्द करने लगे है या कांग्रेस की कार्यशैली से परेशान होकर लोगों ने बदलाव का मन बनाया, देश की लोकसभा व दो विधान सभाओं में लोगों ने बदलाव को समर्थन दिया और भारतीय जनता पार्टी को बहुमत दिया, यदि लोग आज वाकई भारतीय जनता पार्टी की विचार धारा से जुड़े हैं, तो वीजेपी विचार धारा से पहले भी देश का जनसाधारण वाकिफ था, फिर इन चुनावों में इतना भारी समर्थन क्यों, इन सवाल का जवाब में एक ओर नाम सामने आता है, वह है राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ सही मायनों में कहें तो वर्तमान परिपेक्ष में संघ व वीजेपी एक सिक्के के ही दो पहलू है। दरअसल इन चुनावों में संघ ने अपनी विचार धारा और कार्यशैली को बहुत ही प्रभावी तरीके से जन साधारण तक पहुंचाने का प्रयास किया।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के इतिहास में जायें तो संघ एक विशुद्ध राष्ट्रवादी संगठन है, जिसकी एक अलग विचार धारा है, और संघ के लोगों का जीवन अत्यन्त सादगी व संयम से भरा होता है। समाज में फैले संघ के स्वयं सेवक इसका उदाहरण प्रतिदिन लोगों को देते है, शायद सादा जीवन उच्च विचार ही संघ के लोगों का आदर्श है, संघ व वीजेपी की निकटता और संघ द्वारा अपने सिद्धान्तों और भारतीय संस्कृति को जन-जन पहंुचाने का सपना शायद वह वीजेपी के कंधों पर ही पूरा कर सकती है, लेकिन संघ व वीजेपी दोनों के गुण धर्म देखें तो अलग-2 है। संघ एक गैर राजनीतिक संगठन है, जो समाज व देश की भिन्न-2 समस्याओं के प्रति सजग रहकर अपनी अलग-2 इकाइयों के माध्यम से उनके निवारण में सजग रहता है, फिर चाहे वनवासी कल्याण योजना हो या देश में शिक्षा के प्रति समर्पित शिक्षा भारती हो या हिन्दू धर्म परिवर्तन का विषय हो उन पर संघ का कार्य सराहनीय है, जबकि वीजेपी विशुद्ध रुप से राजनैतिक पार्टी है। जिसका केवल मात्र पहला उद्देश्य सत्ता प्राप्ति है, संघ के लोगों का भारतीय जनता पार्टी में एक सीमा से अधिक सक्रिय होना संघ से जुड़े पुराने आदर्शवादी लोगों के मन में संदेह पैदा करता है कि सत्ता की चकाचैंध में कहीं संघ अपने आदर्शों व विचार धारा से डगमगा न जाये केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद माननीय प्रधानमंत्री जी का भव्य शपथ ग्रहण समारोह तो एक बार के लिये लोगों के गले से उतर भी गया था, लेकिन हरियाणा व महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह में इतना भव्य दिखावा और सैकड़ों करोड़ रुपये की फिजूल खर्ची शायद संघ की विचार धारा से मेल नहीं खाती। दो जोड़ी निकर-कमीज और लोगों के घर-2 खाना खाकर अविवाहित रहने वाले प्रचारक यदि कहीं आत्ममंथन कर रहे होंगे तो यकीनन उनकी सहमति इस तरह के कार्यक्रमों में नहीं होगी।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एक बहुत ही देश के प्रति समर्पित ऐसी संस्था है, जिसने हजारों लोगों को बिना किसी स्वार्थ के देश के प्रति जीवन बिताने के लिये तैयार किया है, और देश की गली-कूचों में अलग-अलग प्रकार से अपना जीवन समर्पित करते हैं, पिछले कई सालों में यह भय संघ को समझने वाले हजारों गुमनाम स्वयं सेवकों के जेहन में आया है कि कहीं हम उस उद्देश्य को भूल तो नहीं रहे है, जिसको पूरा करने के लिये संघ की स्थापना की गयी थी, और सत्ता की चकाचैंध में कहीं संघ दिशाहीन तो नहीं हो रहा है। यह एक अत्यन्त विचारनीय विषय है। आज जैसे-2 संघ भारतीय जनता पार्टी को मुखौटो की तरह लगाकर सत्ता पर काबिज हो रहा है, उसके कारण देश में एक लम्बी कतार उन लोगों की लग गयी है, जो संघ से जुड़ना चाहते है। हाल ही में संघ के एक उच्च अधिकारी का बयान पढ़ा कि संघ से जुड़ने वाले लोगों की मात्रा में बहुत ज्यादा वृद्धि हुयी है, ऐसे समय में संघ के लोगों को यह सोचना होगा कि इस भीड़ में कहीं वो लोग संघ पर हावी न हो जाये जो विशुद्ध रुप से सत्ता की चकाचैंध देखकर संघ में प्रवेश चाहते हैं, यह लोग कहीं उस संगठन के सिद्धान्त को डगमगा न दे जिसकी स्थापना 1925 में श्री बाला साहब देवरस, दन्तोपंथ धींगड़े, भैयाजी दाणी, एकनाथ राणाडे और डाॅ0 हेडगेवार ने विजय दशमी के दिन की थी, और संघ की स्थापना के मूल सिद्धान्त थे। भारतीय संस्कृति की रक्षा और भारतीय संस्कृति की महत्ता को जन-जन तक पहुँचना, जीवन में सादगी, और त्याग को धारण करना और भारतीय संस्कृति का प्रचार व प्रसार करना, संघ और भारतीय जनता पार्टी के इस मिश्रण में इन सिद्धांतों का कितना पालन होगा कभी-2 यह संदेह संघ की विचारधारा से जुड़े पुराने लोगों को सताता है। लगभग 90 साल पुरानी इस विशुद्ध राष्ट्रवादी संगठन की सोच व सिद्धान्त पर दाग न लगे इस बात का विशेष ध्यान संघ को रखना होगा, अन्यथा संघ भारतीय जनता पार्टी के बिना भी अपने आप में बहुत ताकतवर व शुद्ध संगठन है।

भारतीय जनता पार्टी के लोग यदि संघ के कधे पर चढ़कर सत्ता के सिंहासन पर पहुंचना चाहते है तो उनको भी इस बात का ध्यान रखना होगा कि उनके किसी कार्य से संघ की मुख्य आदर्शों पर आंच न आये।

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