सिटी‘ से पहले हमें होना पड़ेगा स्मार्ट
- शरद गोयल
- Mar 5, 2022
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स्वच्छ भारत, बेटी बचाओ, योग दिवस की भांति प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी का एक ओर सपना है कि देश में सौ स्मार्ट सिटीज़ बनायी जायें। इसी के चलते एन डी ए सरकार ने अपने पहले बजट में इस योजना को कार्यान्वित करने के लिये एक अलग से बजट भी रखा। यह स्मार्ट सिटीज़ देश में कौन-कौन सी होंगी , नये शहरों को स्मार्ट बनाया जायेगा या अलग भूमि पर नये शहर विकसित किये जायेंगे और यह कौन-कौन से शहर होंगे ? यह अभी योजनाओं में दबा हुआ विषय है। सरकार ने बजट में मात्र दस हजार करोड़ रूपयों का प्रावधान सौ स्मार्ट सिटी के लिये रखा जो कि एक स्मार्ट सिटी बनाने के लिये लगभग सौ करोड़ रूपये का प्रावधान आता है। मात्र सौ करोड़ रूपयों से सिटी कितनी स्मार्ट बन पायेगी यह प्रश्न अभी खड़ा ही हुआ है, इससे पहले यह बहस शुरू हो गयी कि वह सौ स्मार्ट सिटी कौन-कौन सी और कहां-कहां होंगी और इस विषय को लेकर अलग-अलग जगहों के बारे में क्यास और बयान बाजी चलने लगी। जब ऐसा हो रहा था तो फिर हमारा गुड़गांव और गुड़गांव के नेता पीछे क्यों रहें ? लगे हाथों उन्होंने भी गुड़गांव को स्मार्ट सिटी में बदलने की मांग रखने की रस्म अदायगी कर ही दी। इस सारी क्वायत में एक बात निकल कर आती है जो कि बड़ी बहस का मुद्दा है कि क्या कोई शहर मात्र 100, 200, 500 करोड़ रूपये खर्च करने मात्र से ही स्मार्ट सिटी बन जायेगा? मेरा मानना है कि नहीं, जब तक किसी शहर का आम जन व सभी अधिकारी जन और नेता यह नहीं ठानेंगे कि हमें अपने शहर को स्मार्ट शहर बनाना है तब तक केवल मात्र सरकारी योजनाओं का 100-200 करोड़ रूपया लगवाने से कोई शहर स्मार्ट नहीं बन पायेगा। हम बात कर रहे हैं गुड़गांव की , पिछले 15 सालों में जिस तरह गुड़गांव ने तेजी और अव्यवस्थित तरीके से विकास किया, वह अपने आप में एक उदाहरण है। गुड़गांव नगर निगम का वार्षिक बजट लगभग 700 करोड़ से लेकर 800 करोड़ रूपये का है और उसके बावजूद भी मुझे यह कहने में अतिश्योक्ति नहीं है कि गुड़गांव का अधिकतर हिस्सा हरियाणा के गंदे से गंदे शहर से भी बदत्तर है। आम नागरिक रोजाना जन सुविधाओं के अभाव , यातायात जाम , टूटी सड़कें, प्रदूषित पीने का पानी , बिना सार्वजनिक यातायात व्यवस्था , भू-जल का गिरता स्तर , जगह-जगह कचरे के ढेर , आवारा पशुओं का जमावड़ा , असुरक्षित आॅटो रिक्शा का सफर, स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव व शैक्षणिक संस्थानों की कमी, जगह-जगह रेहड़ी वालों द्वारा किया गया जाम , ग्रीन बेल्ट पर अवैध कब्जे , पार्किंग की दुर्गति , सार्वजनिक शौचालय व कूड़ेदान के बिना जर्जर हालत में बस अड्डा , बिल्डर्स की मनमानी , जर्जर अवस्था में रेलवे स्टेशन और न जाने कितनी रोज़मर्रा की परेशानियों में जीने के लिये मजबूर है। कहने को यह साइबर सिटी है लेकिन इसकी असलीयत रोजाना झेल रहे लोग ही जानते हैं। लगभग तीन दर्जन पार्षद, तीन विधायक, एक सांसद, आधा दर्जन आई. ए. एस. , दो दर्जन आई. पी. एस. , चार हजार के करीब पुलिस फोर्स , एक दर्जन एच. सी. एस. अधिकारी इस शहर को स्मार्ट बनाने में लगे हुये हैं और 800 करोड़ रूपये का बजट इस शहर को स्मार्ट नहीं बना पाया , आखिर स्मार्ट सिटी का टैग लगने के बाद क्या बदल जायेगा ? मेरा ऐसा मानना है कि उपरोक्त लिखी सारी फोर्स को और गुड़गांव के नागरिकों को खुद ही यह बीड़ा उठाना होगा अन्यथा ये बेकार की बहस है कि गुड़गांव को स्मार्ट सिटी बनाया जाये। निजी क्षेत्र की बात करें तो गुड़गांव में आज विश्व स्तरीय अस्पताल हैं, स्कूल हैं, शोपिंग काम्पलेक्स हैं और मनोरंजन के भी सभी साधन उपलब्ध हैं यदि सरकार प्रबल इच्छा शक्ति से वर्तमान में जो चीजें गुड़गांव में हैं उन्हीं को बेहतर तरीके से संचालित व नियंत्रित करे और सरकारी तंत्र पर जन प्रतिनिधियों का शिकंजा बने कि वो इन समस्याओं की ओर संवेदनशील हों, आम नागरिक यह ठान लें कि मुझे गुड़गांव को साफ-सुथरा और कचरा व प्लास्टिक मुक्त और एक अनुशासित शहर बनाना है तो गुड़गांव से ज्यादा स्मार्ट सिटी राज्य में तो क्या, देश में भी नहीं मिलेगा लेकिन उसके लिये हम सभी को पहले स्मार्ट बनना पड़ेगा।
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