सोने की चमक को कम न करो मान्यवर
- शरद गोयल
- Mar 10, 2024
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मार्च के महीने में दो जन अभियान देश में देखे गये, एक राज्य स्तर पर था तो दूसरा राष्ट्रीय स्तर पर, एक अभियान के अन्तर्गत सरकार से अधिकारों में आरक्षण हिस्सेदारी की मांग की गयी, तो दूसरे के तहत देश के उत्पादन में पैदा रुकावट को दूर करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया, कहने को देश में मेक इन इण्डिया का नारा बुलन्द किया जा रहा है, दूसरी ओर श्रम प्रधान आभूषण निर्माण उद्योग में उत्पादन शुल्क लगा कर इस उद्योग के विस्तार पर रोक लगाने का प्रयास किया जा रहा है, देश में सोने के आयात पर पहले से ही 10 प्रतिशत आयात शुल्क वसूल किया जाता है, और इससे सरकारी अनुमान के अनुसार 25 हजार करोड़ रुपया वार्षिक वसूल होता है, यह राशि अन्र्तराष्ट्रीय बाजार में कूड पैट्रोलियम आयल की कीमत कम होने से सरकार को 1.5 लाख करोड़ रुपया लाभ होने के कारण सोने के आयात पर वसूल होने वाली 25 करोड़ रुपये की राशि सरकार के लाभ की सूची मे दूसरे पायदान पर है, देश में सोने की वार्षिक मांग 1100 टन के लगभग आंकी गयी, अब सरकार ने आयात शुल्क के साथ-2 2016-17 के वार्षिक बजट में सोने के आभूषण बनाने पर एक प्रतिशत कर उत्पादन शुल्क वसूल करने का प्रस्ताव किया हुआ है। देश में सोने की कीमत सरकारी नीतियों के कारण बढ़ती जा रही है, जिसका नकारात्मक प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर झलकना प्रारम्भ हो चुका है, यह सभी को स्वीकार करना होगा कि आभूषणों का निर्माण एक श्रमप्रधान तकनीकी उद्योग है, इस बात से सभी को सहमत होना होगा, देश का दुर्भाग्य है कि विदेशी विकास की चकाचैंध में देश के परम्परागत श्रम की अनदेखी होने के कारण यह श्रमिक वर्ग आज भुखमरी के कागार पर आकर खड़ा हो गया है, आज देश में श्रम प्रधान तकनीकी उद्योगो पर आधारित उत्पादों का निर्यात निरंतर कम होता जा रहा है, पिछले एक वर्ष में सूती कपड़ा, 5.3 प्रतिशत उससे सिले वस्त्र 3.3 प्रतिशत और स्वर्ण आभूषण 32.8 प्रतिशत कम हुआ है।
भारतीय जीवन शैली से सुपरिचित लोग जानते है कि भारत वर्ष में सोना, विलासता की श्रेणी का उत्पाद नहीं है, अपितु यह जीवन के प्रति सुरक्षा के भाव को दृढ़ करने वाला है और मुझे यह कहना उचित जान पड़ता है कि भारतीय समाज का सर्वाधिक निम्न मध्यवर्गीय समाज तो अपने बुरे दिनों के लिये सोने को ही मात्र सहारा समझता है, आधुनिक युग में बैकिंग प्रणाली का विस्तार हुआ है और कहा जाता है कि यह सोने का एक विकल्प है, परन्तु विचार करिये क्या यह वास्तविक है? बैकों में जमा राशि की क्रय शक्ति देश की अर्थव्यवस्था की उथल-पुथल के कारण निरंतर कम होती जा रही है। ऐसे हालात में बैकिंग व्यवस्था को सोने के संचय का विकल्प कहना धोखा है, यहां पर मैं एक पुरानी बात याद दिलाऊं कि 1975 में देश में आपात काल लगा था, आपात काल के बाद 1977 में चुनाव हुआ। चुनाव में देश की जनता ने आपातकाल लगाने वालों का सफाया कर दिया, सम्पूर्ण उत्तर भारत में तो उनका मानो सम्पूर्ण सूपड़ा ही साफ हो गया, परंतु तीन साल बाद ही मध्यावती चुनाव में सूपड़ा साफ होने वाला दल पुनः सत्ता पर आसीन हो गया था और यह चुनाव मात्र सोने के मुद्दे पर जीता गया था, यह तथ्य प्रमाणित करता है कि देश में सोने व उसके आभूषण समाज के जीवन में कितना महत्व रखता है।
सोने के आभूषणों के निर्माण पर कर लगाना सरकार इसलिये आवश्यक समझती है कि उसे आयत मूल्य व निर्यात मूल्य के बीच के अन्तर को पाटने के लिये आय बढ़ानी है। मैं कुछ सुझाव देना चाहता हूँ कि कर लगाने की अपेक्षा सरकारी खर्चों में चुस्ती व दुरस्ती लाने के उपाय करने चाहिये, देश पर विदेशी कर्ज 476 अरब डाॅलर है, इसके अतिरिक्त कर्ज की मात्रा ओर भी है, 2016-17 के वार्षिक बजट में कर्ज की किस्त और ब्याज का भुगतान करने के लिये सरकार को 777364 करोड़ रुपया देना होगा, जरुरत है सरकार सब्सिडी (जो कि सिर्फ राजनैतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये दी जाती है) को कम करने का वार्षिक लक्ष्य तय करे, लगाये गये करो के सम्बन्ध में विवाद पैदा हो जाने के कारण आज भी 503345 करोड़ रुपया बकाया है, सरकार को चाहिये कि इन विवादों को तुरंत निपटाकर जल्द से जल्द समयवद्ध तरीके से इस राशि की वसूली करे, इसके अतिरिक्त सरकारी व गैर सरकारी बैकों में अक्टूबर से दिसम्बर 2015 में 72792 करोड़ रुपया ऐसा है, जो कर्ज पर दिया गया है किन्तु वापस न ब्याज मिल रहा है और न ही मूलधन, जिसके कारण बैकों में उधार देने की क्षमता नष्ट हो चुकी है, इसके कारण देश का उद्योग व कृषि सभी क्षेत्र प्रभावित होंगे, विवस होकर सरकार टैक्सो के माध्यम से जनता की खून पसीने की कमाई में से वसूल की गयी राशि में से 70 हजार करोड़ रुपया बैकों में निवेश करने की घोषणा की है, देश में कार्पोरेट टैक्स 30 प्रतिशत है, जो विश्व के अनेक विकसित व विकासशील देशों में वसूले जाने वाले टैक्स की दर के समान है, परन्तु सरकार ने इस टैक्स वसूली में कतपय छूटों की घोषणा की है, जिसके परिणाम स्वरुप इस क्षेत्र से औसतन 30 प्रतिशत के स्थान पर 23-24 प्रतिशत टैक्स की वसूली होती है। मेरा सुझाव है कि और अतिरिक्त टैक्स लगाने के स्थान पर इन कुछ खामियों को ही दूर कर ले तो जन आक्रोश को भी शान्त किया जा सकता है और देश के विकास के लिये मेक इन इण्डिया के नारे को भी सार्थक किया जा सकता है।
अन्त में मैं एक सुझाव और भी रखना चाहता हूँ कि देश में प्रचुर व बहुत भारी मात्रा में धार्मिक स्थानों में स्वर्ण भण्डार उपलब्ध है, जो कि देश के विकास में कोई योगदान नही दे रहें है, या कहे तो अनुत्पादक की तरह से पड़े है। सरकार कोई सर्वमान्य नीति लाकर सर्वमान्य स्वीकृति से इन स्वर्ण भंडारों का देश के विकास में इस्तेमाल कर सकती है और देश में विकास के लिये धन के अभाव को दूर किया जा सकता है, फिर न सरकार को लैवी लगानी पड़ेगी और न ही स्वर्णकारो को आंदोलन के लिये मजबूर होना पड़ेगा। स्वर्णकारो की राष्ट्रव्यापी हड़ताल से हो रही राष्ट्रीय हानि को रोकने के लिये जल्द से जल्द सरकार कदम उठाये, जिससे एक संदेश यह भी जायेगा कि सरकार बिना आंदोलन के भी जनभावनाओं को ध्यान में रखती है।
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